aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "دودھ"
मुन्शी दूधनाथ लालजी
लेखक
फ़रहत कदा सर सय्यद नगर, दूधपुर, अलीगढ़
पर्काशक
नज़र द्विवेदी
शायर
ग्रेगोरी दोदीलाज़ोफ़
जिन सीनों ने इन को दूध दिया उन सीनों को बेवपार कियाजिस कोख में इन का जिस्म ढला उस कोख का कारोबार किया
लड़की का रंग और भी ज़र्द होगया। उसने कोई जवाब न दिया, लेकिन जब तमाम लड़कों ने उसे दम दिलासा दिया तो उसकी वहशत दूर हुई और उसने मान लिया कि वो सिराजुद्दीन की बेटी सकीना है।आठ रज़ाकार नौजवानों ने हर तरह सकीना की दिलजोई की। उसे खाना खिलाया, दूध पिलाया और लारी में बिठा दिया। एक ने अपना कोट उतार कर उसे दे दिया क्योंकि दुपट्टा न होने के बाइस वो बहुत उलझन महसूस कर रही थी और बार बार बाँहों से अपने सीने को ढाँकने की नाकाम कोशिश में मसरूफ़ थी।
उसमें दबी-दबी धुंदली सी रौशनी समाई हुई थी। जैसे बारिश की बूंदों का हल्का फुलका गुबार नीचे उतर आया हो... बरसात के यही दिन थे जब मेरे कमरे में सागवान का सिर्फ़ एक ही पलंग था। लेकिन अब इसके साथ एक और पलंग भी था और कोने में एक नई ड्रेसिंग टेबल भी मौजूद थी। दिन लंबे थे, मौसम भी बिल्कुल वैसा ही था। बारिश की बूंदों के हमराह सितारों की तरह उसका गुबार सा इस...
और अगर वो उससे ज़रूरत से ज़्यादा छेड़छाड़ करते तो वो उनको अपनी ज़बान में गालियां देना शुरू करदेती थी। वो हैरत में उसके मुँह की तरफ़ देखते तो वो उनसे कहती, “साहिब, तुम एक दम उल्लु का पट्ठा है। हरामज़ादा है... समझा।” ये कहते वक़्त वो अपने लहजे में सख़्ती पैदा न करती बल्कि बड़े प्यार के साथ उनसे बातें करती। ये गोरे हंस देते और हंसते वक़्त वो सुल्ताना को बिल्कुल...
तिफ़्ल में बू आए क्या माँ बाप के अतवार कीदूध तो डिब्बे का है तालीम है सरकार की
दूधدودھ
Milk
Doodh Ki Qeemat
प्रेमचंद
1942अफ़साना
1930अफ़साना
Dudh Aur Us Ki Haqiqat
हकीम भगत राम
Bulbulon Wala Jhaag Se Bhara Doodh
जय श्री पांडे
2005कहानी
Doodh Aur Khoon
सिद्दीक़ा बेगम
1953महिलाओं की रचनाएँ
Sawere Ka Siyah Doodh
पॉल सलान
Bhan Prakashika
1906
दूध और ख़ून
1957महिलाओं की रचनाएँ
Dood-e-Chiragh-e-Mehfil
सय्यद हुसामुद्दीन राशिदी
1969शायरी
Dud-e-Charagh-e-Mahfil
1969जीवनी
Khawas-e-Doodh
हकीम मोहम्मद अब्दुल्लाह
1997
1957अफ़साना
बुच्ची बाबू
1978नॉवेल / उपन्यास
Doodh Ke Dhule
वजाहत अली संदैलवी
1966
क्या मिलती दूध मलाई नहींये बात समझ में आई नहीं
उसने हंसकर कहा। “अब रात हो गई है, बड़ी अच्छी रात है।”उसने अपना कमज़ोर नन्हा छोटा सा हाथ मेरे दूसरे शाने पर रख दिया और जैसे बादाम के फूलों से भरी शाख़ झुक कर मेरे कंधे पर सो गई।
सिवय्याँ दूध शकर मेवा सब मुहय्या हैमगर ये सब है मुझे नागवार ईद के दिन
बरगद का पेड़ सूखता रहा।तस्वीर हो तो कोई फाड़ दे, मुजस्समा हो तो पटख़ कर चकना-चूर कर दे। अल्लाह के हाथों का बनाया मिट्टी आग का पुतला, अगर हसीन भी हो और ज़िंदा भी, उसकी हर साँस में जवानी की गर्मी महक रही हो तो फिर कुछ बस नहीं चलता। उसके चढ़े हुए सूरज को उतारने की एक ही तरकीब हो सकती है कि खाने की मार दी जाए। घी, गोश्त, अंडे, दूध क़त’ई बंद।
(क्या मुश्किल है हो सकता है)इस बच्चे को कहीं दूध मिले
लड़के सब से ज़्यादा ख़ुश हैं। किसी ने एक रोज़ा रखा, वो भी दोपहर तक। किसी ने वो भी नहीं, लेकिन ईदगाह जाने की ख़ुशी इनका हिस्सा है। रोज़े बड़े-बूढ़ों के लिए होंगे, बच्चों के लिए तो ईद है। रोज़ ईद का नाम रटते थे, आज वो आ गई। अब जल्दी पड़ी हुई है कि ईदगाह क्यूँ नहीं चलते। उन्हें घर की फ़िक़्रों से क्या वास्ता? सेवइयों के लिए घर में दूध और शकर, मेवे हैं या नहीं, ...
शाम को ये फ़क़ीर कहीं से माँग-ताँग कर मिट्टी के दो दीए और सरसों का तेल ले आया और पीर कड़क शाह की क़ब्र के सिरहाने और पाइंती चराग़ रौशन कर दिए। रात को पिछले पहर कभी-कभी उस मज़ार से अल्लाह-हू का मस्त नारा सुनाई दे जाता। छः महीने गुज़रने न पाए थे कि ये चौदह मकान बन कर तैयार हो गए। ये सब के सब दो मंज़िला और क़रीब-क़रीब एक ही वज़ा के थे। सात एक तरफ़ और सात दूसरी तरफ़। बीच में चौड़ी चकली सड़क थी। हर एक मकान के नीचे चार चार दुकानें थीं। मकान की बालाई मन्ज़िल में सड़क के रुख़ वसीअ बरामदा था। उसके आगे बैठने के लिए कश्ती नुमा शह-नशीन बनाई गई थी। जिसके दोनों सिरों पर या तो संग-ए-मरमर के मोर रक़्स करते हुए बनाए गए थे और या जल परियों के मुजस्समे तराशे गए थे, जिनका आधा धड़ मछली का और आधा इन्सान का था। बरामदे के पीछे जो बड़ा कमरा बैठने के लिए था उसमें संग-ए-मरमर के नाज़ुक-नाज़ुक सुतून बनाए गए थे... दीवारों पर ख़ुशनुमा पच्चीकारी की गई थी। फ़र्श सब्ज़ चमकदार और पत्थरों का बनाया गया था। जब संग-ए-मरमर के सुतूनों के अ’क्स इस फ़र्श पर पड़ते तो ऐसा मा’लूम होता गोया सफ़ेद-सफ़ेद बुर्राक़ परों वाले राज हँसों ने अपनी लंबी-लंबी गर्दनें झील में डुबो दी हैं।
चाह को कहते हैं हिन्दी में कुआँदूद को हिन्दी में कहते हैं धुआँ
इलम-उल-हैवानात के प्रोफ़ेसरों से पूछा, सलोत्रियों से दिरयाफ़्त किया, ख़ुद सर खपाते रहे लेकिन कभी समझ में न आया कि आख़िर कुत्तों का फ़ायदा क्या है? गाय को लीजिए, दूध देती है, बकरी को लीजिए, दूध देती है और मेंगनियाँ भी। ये कुत्ते क्या करते हैं? कहने लगे कि, “कुत्ता वफ़ादार जानवर है।” अब जनाब वफ़ादारी अगर इसी का नाम है कि शाम के सात बजे से जो भौंकना शुर...
हथेली रेशमी नाज़ुक मलाई नर्म लतीफ़हसीन मरमरीं संदल सफ़ेद दूध धुली
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
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