aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ذریعہ"
सुल्ताना का दिल धड़क रहा था। उसने कहा, “ये मुआ पाख़ाना है या क्या है। बीच में ये रेल गाड़ियों की तरह ज़ंजीर क्या लटका रखी है। मेरी कमर में दर्द था। मैंने कहा चलो इसका सहारा ले लूंगी, पर इस मुए ज़ंजीर को छेड़ना था कि वो धमाका हुआ कि मैं तुम से क्या कहूं।”इस पर ख़ुदाबख़्श बहुत हंसा था और उसने सुल्ताना को इस पैख़ाने की बाबत सब कुछ बता दिया था कि ये नए फैशन का है जिसमें ज़ंजीर हिलाने से सब गंदगी नीचे ज़मीन में धँस जाती है।
“ग़लत।”महाराजा ने बड़ी संजीदगी के साथ कहा, “सच कहता हूँ... एक दफ़ा देख कर दूसरी दफ़ा फिर देखा। भींचती, चिल्लाती और हंसती रहीं।”
‘‘पिरोजा दस्तूर’’, लड़की ने सादगी से जवाब दिया। ‘‘मैंने आपको पहले किसी कन्सर्ट वग़ैरा में नहीं देखा।’’‘‘मैं सात बरस बाद पिछले हफ़्ते ही पैरिस से आई हूँ।’’
“मालूम नहीं साहब।”“वो बाई जी कहाँ हैं?”
महिलाओं पर पुरुषों की रचनाएँ यहाँ पढ़ें। इस पृष्ठ में महिलाओं पर पुरुषों द्वारा लिखी गई सर्वोत्तम पुस्तकें शामिल हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन की प्रतिबंधित पुस्तकें यहां पढ़ें। रेख़्ता ने अपने पाठकों के लिए स्वतंत्रता आंदोलन की प्रतिबंधित पुस्तकों का एक बड़ा संग्रह तैयार किया है, आप को ज़रूर पढ़ना चाहिए...
अख़बार उस खिड़की का काम करते हैं जिसके द्वारा हम वैश्विक-घटनाओं को देखते हैं, और ऐसा करते हुए अख़बार विश्व का प्रतिबिम्ब भी बन जाता है। यहाँ कुछ शेर प्रस्तुत किए जा रहे हैं जिन में शायर बड़ी कुशलता से अख़बार को रूपक की तरह प्रयोग कर के विश्व घटनाओं, मनुष्यों और अख़बारों एवं पत्रकारिता पर टिप्पणी करता है।
ज़रीयाذریعہ
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सय्यद कलीमुल्लाह हुसैनी
छंदशास्र
Gulha-e-Dagh
आफ़ताब अहमद सिद्दीक़ी रुदाैलवी
संकलन
Sawaneh Umri Maulana Azad
नवाब सय्यद मोहम्मद आज़ाद
गद्य/नस्र
Urdu Bahaisiyat-e-Zarya-e-Taleem
मौलवी अब्दुल हक़
भाषा
Urdu Bahaisiyat-e-Zariya-e-Taleem
अब्दुर्रशीद अरशद
Operation Venice
अकरम इलाहाबादी
जासूसी
Yog
मोहम्मद बदरुल इस्लाम
औषधि
Hanste Hanste
बर्क़ आशियान्वी
Urdu Zariy-e-Taleem Aur Istalahat
आफ़ताब हुसैन
एजुकेशन / शिक्षण
Sukha Aur Uska Zariya Homeopathy Ilaj
असदुल्लाह ख़ान
होम्योपैथी
Haqiqi Zariya Hindu Muslim Ittihad
नासिरुद्दीन अब्दुल्लाह
Khel Ke Zariye Taleem
अब्दुल ग़फ़्फ़ार मुदहोली
Mazhar-ul-Ejaz Zaria-e-Nijat
अननोन ऑथर
सूफ़ीवाद / रहस्यवाद
Waseela-e-Sharf Wa Zaria-e-Daulat
फरज़ंद-ए-अली साहब मुनीरी
Faiz Muazzam
मोहम्मद शाह
अन्य
मुझे राजकिशोर से नफ़रत नहीं थी, इसलिए कि मैंने अपनी उम्र में शाज़-ओ-नादिर ही किसी इंसान से नफ़रत की है, मगर वो मुझे कुछ ज़्यादा पसंद नहीं था। इसकी वजह मैं आहिस्ता आहिस्ता आप से बयान करूंगा।राजकिशोर की ज़बान उसका लब-ओ-लहजा जो ठेट रावलपिंडी का था, मुझे बेहद पसंद था। मेरा ख़याल है कि पंजाबी ज़बान में अगर कहीं ख़ूबसूरत क़िस्म की शीरीनी मिलती है तो रावलपिंडी की ज़बान ही में आपको मिल सकती है। इस शहर की ज़बान में एक अ’जीब क़िस्म की मर्दाना निसाइयत है जिसमें ब-यक-वक़्त मिठास और घुलावट है।
लड़की के भाई ने सिगरेट निकाल कर सुलगाया। अख़लाक़ ने अपनी जेब में हाथ डाला और उससे मुख़ातिब हुआ, “ज़रा माचिस इनायत फ़रमाईए।”लड़की के भाई ने उसको माचिस देदी। अख़लाक़ ने अपना सिगरेट सुलगाया और माचिस उसको वापस देदी, “शुक्रिया!”
बुढ़ापा अक्सर बचपन का दौर-ए-सानी हुआ करता है। बूढ़ी काकी में ज़ायक़ा के सिवा कोई हिस बाक़ी न थी और न अपनी शिकायतों की तरफ़ मुख़ातिब करने का, रोने के सिवा कोई दूसरा ज़रिया आँखें हाथ, पैर सब जवाब दे चुके थे। ज़मीन पर पड़ी रहतीं और जब घर वाले कोई बात उनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ करते, खाने का वक़्त टल जाता या मिक़दार काफ़ी न होती या बाज़ार से कोई चीज़ आती और उन्हें न मिलत...
लिहाज़ा वो निशानियां जो नस्र और शे’र में मुश्तर्क हैं, उनको पहचानने से हमारा मसला हल नहीं होता और न उन निशानियों का ज़िक्र करने से हमारी मुश्किल आसान होती है, जिनको अव्वल तो पहचानना मुश्किल है और अगर पहचान भी लिया जाये तो ये बताना मुश्किल है कि शे’र की उन तक रसाई क्यूँकर हुई। हमें तो उन निशानियों की तलाश है जो सिर्फ़ शे’र में पाई जाती हैं, या अगर नस...
उमीद-ए-चश्म-ए-मुरव्वत कहाँ रही बाक़ीज़रीया बातों का जब सिर्फ़ टेलीफ़ोन हुआ
कुछ शायरी ज़रीया-ए-इज़्ज़त नहीं मुझेमैं: माफ़ कीजिएगा क़िबला, मैंने महज़ इंटरव्यू के शुरूआत की ग़रज़ से ये बात पूछ ली वर्ना आपकी शायरी ही के बारे में आपसे कुछ दरयाफ़्त करना मक़सूद है। हक़ीक़त में आपका पूरा उर्दू कलाम मोतियों में तौलने के क़ाबिल है। रशीद अहमद सिद्दीक़ी ने सच कहा है कि अगर मुझसे पूछा जाये कि हिन्दोस्तान को मुग़लिया सल्तनत ने क्या दिया तो मैं बेतकल्लुफ़ तीन नाम लूँगा, ग़ालिब, उर्दू और ताज महल।
इज़हार-ए-हाल का भी ज़रीया नहीं रहादिल इतना जल गया है कि आँखों में नम नहीं
चारपाई एक ऐसी ख़ुदकफ़ील तहज़ीब की आख़िरी निशानी है जो नए तक़ाज़ों और जरूरतों से ओहदा बर आ होने के लिए नित नई चीज़ें ईजाद करने की क़ाइल न थी। बल्कि ऐसे नाज़ुक मवाक़े पर पुरानी में नई खूबियां दरयाफ़्त कर के मुस्कुरा देती थी। उस अहद की रंगारंग मजलिसी ज़िंदगी का तसव्वुर चारपाई के बग़ैर मुम्किन नहीं। उसका ख़्याल आते ही ज़ेहन के उफ़ुक़ पर बहुत से सुहाने मंज़र उभर ...
ये सोर ज़न है साक़ी-ए-कौसर के बाब में और तो और इसे मुतबर्रिक अश्या रहन रखकर और बेच कर शराब ख़रीदने में भी कोई बाक न था, एक मर्तबा ये कह कर;
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