aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "روشن"
जोशिश अज़ीमाबादी
1737 - 1801
शायर
रविश सिद्दीक़ी
1909 - 1971
रौशन बनारसी
1920 - 1985
लेखक
रोशन सिद्दीक़ी
रौशन लाल रौशन
शैख़ मोहम्मद रोशन जोशिश लखनवी
डॉ. रोशन आरा
सादिया रोशन सिद्दीक़ी
इनायतुल्लाह रौशन बदायूनी
1860 - 1945
गीता ठाकुर रौशनी
अमिना रौशनी रिशा
स्वामी श्यामानन्द सरस्वती रौशन
रोशन बरेलवी
रविश नदीम
रोशन आरा नुज़हत
मिस्ल-ए-अंजुम उफ़ुक़-ए-क़ौम पे रौशन भी हुएबुत-ए-हिन्दी की मोहब्बत में बिरहमन भी हुए
उन से नज़रें क्या मिलीं रौशन फ़ज़ाएँ हो गईंआज जाना प्यार की जादूगरी क्या चीज़ है
नहीं पाएगा निशाँ कोई हमारा हरगिज़हम जहाँ से रविश-ए-तीर-ए-नज़र जाएँगे
इतने रौशन चेहरे पर भीसूरज का है साया चाँद
एक इक कर के हुए जाते हैं तारे रौशनमेरी मंज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते हैं
मिर्ज़ा ग़ालिब के समकालीन, 19वीं सदी की उर्दू ग़ज़ल का रौशन सितारा।
चाँद उर्दू शाएरी का एक लोकप्रिय विषय रहा हैI चाँद को उसकी सुंदरता, उसके उज्ज्वल नज़ारे से उसके प्रतिरूप के कारण कसरत से उपयोग में लाया गया हैI शाएर चाँद में अपने माशूक़ की शक्ल भी देखता हैI शाएरों ने बहुत दिलचस्प अंदाज़ में शेर भी लिखे हैं जिनमें चाँद और माहबूब के हुस्न के बीच प्रतिस्पर्धा का तत्व भी मौजूद है।
बीसवीं सदी का आरम्भिक दौर पूरे विश्व के लिए घटनाओं से परिपूर्ण समय था और विशेष तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप के लिए यह एक बड़े बदलाव का युग था। नए युग की शुरुआत ने नई विचारधाराओं के लिए ज़मीन तैयार की और पश्चिम की विस्तारवादी आकांछाओं को गहरा आघात पहुँचाया। इन परिस्थितियों ने उर्दू शायरी की विषयवस्तु और मुहावरे भी पूरी तरह बदल दिए और इस बदलाव की अगुआई का श्रेय निस्संदेह अल्लामा इक़बाल को जाता है। उन्होंने पाठकों में अपने तेवर, प्रतीकों, बिम्बों, उपमाओं, पात्रों और इस्लामी इतिहास की विभूतियों के माध्यम से नए और प्रगतिशील विचारों की ऎसी ज्योति जगाई जिसने सब को आश्चर्यचकित कर दिया। उनकी शायरी की विश्व स्तर पर सराहना हुई साथ ही उन्हें विवादों में भी घसीटा गया। उन्हें पाठकों ने एक महान शायर के तौर पर पूरा - पूरा सम्मान दिया और उनकी शायरी पर भी बहुत कुछ लिखा गया है। उन्होंने बच्चों के लिए भी लिखा है और यहां भी उन्हें किसी से कमतर नहीं कहा जा सकता। 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' और 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी' जैसी उनकी ग़ज़लों - नज़्मों की पंक्तियाँ आज भी अपनी चमक बरक़रार रखे हुए हैं। यहां हम इक़बाल के २० चुनिंदा अशआर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। अगर आप हमारे चयन को समृद्ध करने में हमारी मदद करना चाहें तो आपका रेख्ता पर स्वागत है।
रौशनروشن
light, bright, clear, evident
ग़ालिब इन इंगलिश वर्स
रोशन चुफ़ला
2004अनुवाद
रौशन दान
जावेद सिद्दीक़ी
2012परिचय
Urdu Mein Taveel Nazm Nigari Ki Riwayat Aur Irtiqa
रौशन अख़्तर काज़मी
1984
Rooh-e-Raushan Mustaqbil
सय्यद तुफ़ैल अहमद मंगलोरी
1946मज़ामीन / लेख
Musalmanon Ka Raushan Mustaqbil
1938इस्लामियात
Taleem-o-Tadrees Ke Raushan Pahlu
रियाज़ अहमद
2011एजुकेशन / शिक्षण
Raat Idhar Udhar Raushan
मोहम्मद अल्वी
1995कुल्लियात
काले लोगाें की रौशन नज़्में
अमजद इस्लाम अमजद
1980नज़्म
Fikr-e-Raushan
आल-ए-अहमद सुरूर
1995आलोचना
Mahakte Phool Naat-e-Rasool
रौशन बस्तवी
नात
Shamsur Rahman Farooqi, Ek Roshan Kitab : Shumara Number-012
कौसर सिद्दीक़ी
करवान-ए-अदब, भोपाल
Tazkira Pathanon Ki Asliyat Aur Unki Tareekh
रोशन ख़ान
1980
Urdu me Taveel Nazm Nigari ki Riwayat aur Irtiqa
Aasman Raushan Hai
कृष्ण चंदर
1970नॉवेल / उपन्यास
Kale Logon Ki Raushan Nazmein
1991नज़्म
दलील-ए-सुब्ह-ए-रौशन है सितारों की तुनुक-ताबीउफ़ुक़ से आफ़्ताब उभरा गया दौर-ए-गिराँ-ख़्वाबी
रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमामदहका हुआ है आतिश-ए-गुल से चमन तमाम
वो आँख कि है सुर्मा-ए-अफ़रंग से रौशनपुरकार ओ सुख़न-साज़ है नमनाक नहीं है
सड़क की दूसरी तरफ़ माल गोदाम था जो इस कोने से उस कोने तक फैला हुआ था। दाहिने हाथ को लोहे की छत के नीचे बड़ी बड़ी गांठें पड़ी रहती थीं और हर क़िस्म के माल अस्बाब के ढेर से लगे रहते थे। बाएं हाथ को खुला मैदान था जिसमें बेशुमार रेल की पटड़ियां बिछी हुई थीं। धूप में लोहे की ये पटड़ियाँ चमकतीं तो सुल्ताना अपने हाथों की तरफ़ देखती जिन पर नीली नीली रगें बिल्कुल इ...
आगे क़दम बढ़ाएँ जिन्हें सूझता नहींरौशन चराग़-ए-राह किए जा रहा हूँ मैं
वो मय जिस से रौशन ज़मीर-ए-हयातवो मय जिस से है मस्ती-ए-काएनात
ज़िंदगी फिर से फ़ज़ा में रौशनमिशअल-ए-बर्ग-ए-हिना करती है
अ'जीब ज़िंदगी थी उनकी। घर में मिट्टी के दो चार बर्तनों के सिवा कोई असासा नहीं। फटे चीथड़ों से अपनी उर्यानी को ढाँके हुए दुनिया की फ़िक़्रों से आज़ाद। क़र्ज़ से लदे हुए। गालियाँ भी खाते, मार भी खाते मगर कोई ग़म नहीं। मिस्कीन इतने कि वसूली की मुतलक़ उम्मीद न होने पर लोग उन्हें कुछ न कुछ क़र्ज़ दे देते थे। मटर या आलू की फ़स्ल में खेतों से मटर या आलू उखाड़ लाते ...
रुख़-ए-रौशन के आगे शम्अ रख कर वो ये कहते हैंउधर जाता है देखें या इधर परवाना आता है
कौन सी आँखों में मेरे ख़्वाब रौशन हैं अभीकिस की नींदें हैं जो मेरे रतजगों में क़ैद हैं
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
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