aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "زبان"
डायरेक्टर क़ौमी कौंसिल बरा-ए-फ़रोग़-ए-उर्दू ज़बान, नई दिल्ली
पर्काशक
मुक़तद्रा क़ौमी ज़बान, इस्लामाबाद
फख्र ज़मान
लेखक
शोएब ज़मान
शायर
राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद्, नई दिल्ली
किताब ज़बान तेहरान
ज़मान कंजाही
गुरमनी मरकज़-ए-ज़बान-ओ-अदब, पाकिस्तान
मरकज़ी इदारा बरा-ए-हिंदुस्तानी ज़बान, कर्नाटक
इदारा-ए-ज़बान-ओ-उस्लूब, अलीगढ़
मर्कज़ बराये उर्दू ज़बान, हैदराबाद
इदारा-ए-ज़बान-ओ-अदब, मुरादाबाद
ज़बान प्रेस, दिल्ली
उर्दू ज़बान सेल, रोहतास
मजलिस-ए-ज़बान-ए-दफ़्तरी, पंजाब
बोलते क्यूँ नहीं मिरे हक़ मेंआबले पड़ गए ज़बान में क्या
मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँकाश पूछो कि मुद्दआ' क्या है
बात पर वाँ ज़बान कटती हैवो कहें और सुना करे कोई
तुम्हें पता तो चले बे-ज़बान चीज़ का दुखमैं अब चराग़ की लौ ही नहीं बनाऊँगा
वही इक ख़मोश नग़्मा है 'शकील' जान-ए-हस्तीजो ज़बान पर न आए जो कलाम तक न पहुँचे
उर्दू भाषा के सौ मशहूर हास्य-व्यंग पुस्तकों चयन
ज्ञानपीठ से पुरस्कृत उर्दू किताबें.
साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत उर्दू किताबें
ज़बानزبان
dialect, speech, language, tongue
Tareekh-e-Adab-e-Urdu
नूरुल हसन नक़वी
1997इतिहास
तारीख़-ए-अदब-ए-उर्दू
जमील जालिबी
1989इतिहास
Urdu Adab Ki Tahreekein
अनवर सदीद
2004इतिहास
क़वाइद-ए-उर्दू
मौलवी अब्दुल हक़
2007भाषा
उर्दू तदरीस जदीद तरीक़े और तक़ाज़े
रियाज़ अहमद
2013भाषा
Urdu Adab Ki Mukhtasar Tareekh
1991इतिहास
Aam Lisaniyat
ज्ञान चंद जैन
1985भाषा
Urdu Ki Lisani Tashkeel
मिर्ज़ा ख़लील अहमद बेग
1985शोध
2016शोध
Urdu Zaban-o-Qawaid
शफ़ी अहमद सिद्दीक़ी
1991नॉन-फ़िक्शन
उर्दू अदब की तारीख़
ज़ियाउर्रहमान सिद्दीक़ी
2014इतिहास
फ़ोर्ट विलियम कॉलेज की अदबी ख़िदमात
डॉ. उबैदा बेगम
1983शोध
Urdu Ghazal Ka Tareekhi Irtiqa
ग़ुलाम आसी रशीदी
2006इतिहास
Urdu Imla
रशीद हसन ख़ाँ
1974नॉन-फ़िक्शन
तिरे जमाल की तस्वीर खींच दूँ लेकिनज़बाँ में आँख नहीं आँख में ज़बान नहीं
ज़बान-ए-ख़ार से निकली सदा-ए-बिस्मिल्लाहजुनूँ को जब सर-ए-शोरीदा पर सवार किया
चंद और लमहात जब इसी तरह ख़ामोशी से गुज़र गए तो कुलवंत कौर छलक पड़ी, लेकिन तेज़ तेज़ आँखों को बचा कर वो सिर्फ़ इस क़दर कह सकी, “ईशर सय्यां।”ईशर सिंह ने गर्दन उठा कर कुलवंत कौर की तरफ़ देखा, मगर उसकी निगाहों की गोलियों की ताब न ला कर मुँह दूसरी तरफ़ मोड़ लिया।
यही वो शहर जो मेरे लबों से बोलता थायही वो शहर जो मेरी ज़बान देखता है
इसी लिए तो जो लिक्खा तपाक-ए-जाँ से लिखाजभी तो लोच कमाँ का ज़बान तीर की है
पयाम्बर न मयस्सर हुआ तो ख़ूब हुआज़बान-ए-ग़ैर से क्या शरह-ए-आरज़ू करते
एक एम.एससी. पास रेडियो इंजिनियर में जो मुसलमान था और दूसरे पागलों से बिल्कुल अलग थलग, बाग़ की एक ख़ास रविश पर, सारा दिन ख़ामोश टहलता रहता था, ये तब्दीली नुमूदार हुई कि उसने तमाम कपड़े उतार कर दफ़अदार के हवाले कर दिए और नंग-धड़ंग सारे बाग़ में चलना फिरना शुरू कर दिया।चैनयूट के एक मोटे मुसलमान पागल ने जो मुस्लिम लीग का सरगर्म कारकुन रह चुका था और दिन में पंद्रह सौ मर्तबा नहाया करता था, यकलख़्त ये आदत तर्क कर दी। उसका नाम मोहम्मद अली था। चुनांचे उसने एक दिन अपने जंगले में ऐलान कर दिया कि वो क़ाइद-ए-आज़म मोहम्मद अली जिन्ना है। उसकी देखा देखी एक सिख पागल मास्टर तारा सिंह बन गया। क़रीब था कि इस जंगले में ख़ूनख़राबा हो जाये मगर दोनों को ख़तरनाक पागल क़रार दे कर अलाहिदा अलाहिदा बंद कर दिया गया।
कई दिन गुज़र गए... सिराजुद्दीन को सकीना की कोई ख़बर न मिली। वो दिन भर मुख़्तलिफ़ कैम्पों और दफ़्तरों के चक्कर काटता रहता। लेकिन कहीं से भी उसकी बेटी का पता न चला। रात को वो बहुत देर तक उन रज़ाकार नौजवानों की कामयाबी के लिए दुआएं मांगता रहता। जिन्होंने उसको यक़ीन दिलाया था कि अगर सकीना ज़िंदा हुई तो चंद दिनों ही में वो उसे ढूंढ निकालेंगे।एक रोज़ सिराजुद्दीन ने कैंप में उन नौजवान रज़ाकारों को देखा, लारी में बैठे थे। सिराजुद्दीन भागा भागा उनके पास गया। लारी चलने ही वाली थी कि उसने पूछा, “बेटा, मेरी सकीना का पता चला?”
वो आदमी मिला था मुझे उस की बात सेऐसा लगा कि वो भी बहुत बे-ज़बान है
वो रणधीर की इस बात का मतलब समझ गई थी क्योंकि उसकी आँखों में शर्म के लाल डोरे तैर गए थे लेकिन बाद में जब रणधीर ने उसे अपनी धोती निकाल कर दी तो उसने कुछ देर सोच कर अपना लहंगा उतार दिया। जिस पर मैल भीगने की वजह से और भी नुमायां होगया था। लहंगा उतार कर उसने एक तरफ़ रख दिया और जल्दी से धोती अपनी रानों पर डाल ली। फिर उसने अपनी तंग भिंची भिंची चोली उतारने ...
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
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