aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "سرے"
सर सय्यद अहमद ख़ान
1817 - 1898
लेखक
दिवाकर राही
1914 - 1968
शायर
सरस्वती सरन कैफ़
1922 - 2007
पी पी श्रीवास्तव रिंद
born.1950
सर्वजीत सर्व
बाबू लाडली लाल लाएक़
born.1894
शैख़ अब्दुल क़ादिर
1874 - 1950
सरन बलरामपुरी
लाला सिरी राम
1875 - 1930
शफ़्क़त अली शफ़क़
1930 - 2014
राय सरब सुख दिवाना
1727 - 1788/89
श्री नराण निगम
संपादक
रेवती सरन शर्मा
नवाब सर निज़ामत जंग
1871 - 1955
नवब सर अमीन जंग
वो सर्व-क़द है मगर बे-गुल-ए-मुराद नहींकि उस शजर पे शगूफ़े समर के देखते हैं
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँगमैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
अख़्बारों से कुछ पता नहीं चलता था और पहरेदार सिपाही अनपढ़ और जाहिल थे। उनकी गुफ़्तुगूओं से भी वो कोई नतीजा बरामद नहीं कर सकते थे। उनको सिर्फ़ इतना मालूम था कि एक आदमी मोहम्मद अली जिन्ना है जिसको क़ाइद-ए-आज़म कहते हैं। उसने मुसलमानों के लिए एक अलाहिदा मुल्क बनाया है जिसका नाम पाकिस्तान है... ये कहाँ है, उसका महल-ए-वक़ूअ क्या है, उसके मुतअल्लिक़ वो कुछ ...
जो गुज़ारी न जा सकी हम सेहम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
मैं चाहता हूँ मोहब्बत सिरे से मिट जाएमैं चाहता हूँ उसे सोचना मुहाल न हो
शायरी, या ये कहा जाए कि अच्छा तख़्लीक़ी अदब हम को हमारे आम तजर्बात और तसव्वुरात से अलग एक नई दुनिया में ले जाता है वह हमें रोज़ मर्रा की ज़िंदगी से अलग होते हैं। क्या आप दोस्त और दोस्ती के बारे में उन बातों से वाक़िफ़ है जिन को ये शायरी मौज़ू बनाती है? दोस्त, उस की फ़ित्रत उस के जज़्बात और इरादों का ये शेरी बयानिया आप के लिए हैरानी का बाइस होगा। इसे पढ़िए और अपने आस पास फैले हुए दोस्तों को नए सिरे से देखना शुरू कीजिए।
रफ़्तगाँ की याद से किसे छुटकारा मिल सकता है। गुज़रे हुए लोगों की यादें बराबर पलटती रहती हैं और इंसान बे-चैनी के शदीद लमहात से गुज़रता है। तख़्लीक़ी ज़हन की हस्सासियत ने इस मौज़ू को और भी ज़्यादा दिल-चस्प बना दिया है और ऐसे ऐसे बारीक एहसासात लफ़्ज़ों में क़ैद हो गए हैं जिनसे हम सब गुज़रते तो हैं लेकिन उन पर रुक कर सोच नहीं सकते। हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए और अपने अपने रफ़्तगाँ की नए सिरे से बाज़ियाफ़्त कीजिए।
सिरेسرے
beginning, end, extremity, point
Kai Chand The Sar-e-Aasman
रशीद अशरफ़ ख़ान
नॉवेल / उपन्यास तन्क़ीद
Shaoor
जीशान-उल-हस्सन उस्मानी
अफ़साना
Baat Se Baat
वासिफ़ अली वासिफ़
शिक्षाप्रद
Urdu Ka Ibtedai Zamana
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
आलोचना
Arasto Se Elliot Tak
जमील जालिबी
Parliament Se Bazar-e-Husn Tak
जहीर अहमद बाबर
राजनीतिक
Jadeed Urdu Ghazal
डॉ. राहत बद्र
शायरी तन्क़ीद
Urdu Mein Nazm-e-Muarra Aur Azad Nazm
हनीफ़ कैफ़ी
नज़्म तन्क़ीद
सर सय्यद और अलीगढ़ तहरीक
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
साहित्यिक आंदोलन
Siyasat Nama
Nizam-ul-Mulk Toosi
विश्व इतिहास
Apna Gareban Chaak
जावेद इक़बाल
आत्मकथा
Kayi Chand The Sar-e-Asman
नॉवेल / उपन्यास
जदीद नज़्म: हाली से मीराजी तक
कौसर मज़हरी
नज़्म
Kulliyat-e-Nafeesi
अबू अली सीना
औषिधि
तरक़्क़ी पसंद तहरीक और उर्दू अफ़्साना
डॉ. सादिक़
जुदा है हीर से राँझा कई ज़मानों सेनए सिरे से कहानी को फिर लिखा जाए
वो ख़्वाब सारे शबाब सारेजो तेरे होंटों पे मर-मिटे थे
कमरा बहुत छोटा था जिसमें बेशुमार चीज़ें बेतर्तीबी के साथ बिखरी हुई थीं। तीन चार सूखे सड़े चप्पल पलंग के नीचे पड़े थे जिनके ऊपर मुँह रख कर एक ख़ारिश ज़दा कुत्ता सो रहा था और नींद में किसी ग़ैरमरई चीज़ को मुँह चिड़ा रहा था। उस कुत्ते के बाल जगह जगह से ख़ारिश के बाइस उड़े हुए थे। दूर से अगर कोई उस कुत्ते को देखता तो समझता कि पैर पोंछने वाला पुराना टाट दोहरा क...
कभी कभी आरज़ू के सहरा में आ के रुकते हैं क़ाफ़िले सेवो सारी बातें लगाव की सी वो सारे उनवाँ विसाल के से
बीती बातें क्या दोहरानाअब तो गोरी नए सिरे से
سہرے کی ہر لڑی سے ہیں آنکھیں لڑی ہوئی 12
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगेजाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे
پرہ خوشی سے سرخ ہے زہرا کے لال کاگذری شبِ فراق دن آیا وصال کا
अब कोई छू के क्यूँ नहीं आता उधर सिरे का जीवन-अंगजानते हैं पर क्या बतलाएँ लग गई क्यूँ पर्वाज़ में चुप
जज़्बे की रौ में बह कर मैं बहुत कुछ कह गई। शायद ये सब मुझे न कहना चाहिए था। शायद इसमें आपकी सुबकी है। शायद इससे ज़्यादा नागवार बातें आपसे अब तक किसी ने न की हों, न सुनाई होंगी। शायद आप ये सब कुछ नहीं कर सकते। शायद थोड़ा भी नहीं कर सकते। फिर भी हमारे मुल्क में आज़ादी आ गई है। हिन्दोस्तान में और पाकिस्तान में और शायद एक तवाइफ़ को भी अपने रहनुमाओं से पूछन...
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