दोस्त शायरी
शायरी, या ये कहा जाए कि अच्छा तख़्लीक़ी अदब हम को हमारे आम तजर्बात और तसव्वुरात से अलग एक नई दुनिया में ले जाता है वह हमें रोज़ मर्रा की ज़िंदगी से अलग होते हैं। क्या आप दोस्त और दोस्ती के बारे में उन बातों से वाक़िफ़ है जिन को ये शायरी मौज़ू बनाती है? दोस्त, उस की फ़ित्रत उस के जज़्बात और इरादों का ये शेरी बयानिया आप के लिए हैरानी का बाइस होगा। इसे पढ़िए और अपने आस पास फैले हुए दोस्तों को नए सिरे से देखना शुरू कीजिए।
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों
bear enmity with all your might, but this we should decide
if ever we be friends again, we are not mortified
तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़'
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिए
my heartbreak's not complete, it pends
I need some favours from my friends
दाग़ दुनिया ने दिए ज़ख़्म ज़माने से मिले
हम को तोहफ़े ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले
दुश्मनों से प्यार होता जाएगा
दोस्तों को आज़माते जाइए
वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
जो पिछली रात से याद आ रहा है
ऐ दोस्त मैं ख़ामोश किसी डर से नहीं था
क़ाइल ही तिरी बात का अंदर से नहीं था
दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त
दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से
friendship is commonplace my dear
but friends are hard to find I fear
तेरी बातें ही सुनाने आए
दोस्त भी दिल ही दुखाने आए
यूँ लगे दोस्त तिरा मुझ से ख़फ़ा हो जाना
जिस तरह फूल से ख़ुशबू का जुदा हो जाना
दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब
मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं
may my friends too receive this wealth of pain
I cannot envisage my solitary gain
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता
मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे
मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-ब-लब मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे
My companion, my intimate, be not a friend and yet betray
The pain of love is fatal now, for my life please do not pray
दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है
दोस्तों ने भी क्या कमी की है
दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं
I do nor fear injury from my enemies
what frightens me is my friend's fidelities
मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे
ये मुतालबा है हक़ का कोई इल्तिजा नहीं है
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं
देखना है खींचता है मुझ पे पहला तीर कौन
दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला
वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला
पत्थर तो हज़ारों ने मारे थे मुझे लेकिन
जो दिल पे लगा आ कर इक दोस्त ने मारा है
न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर
कई साल ब'अद मिले हैं हम तेरे नाम आज की शाम है
अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल है
दिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए
देखा जो खा के तीर कमीं-गाह की तरफ़
अपने ही दोस्तों से मुलाक़ात हो गई
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पुराने यार भी आपस में अब नहीं मिलते
न जाने कौन कहाँ दिल लगा के बैठ गया
हटाए थे जो राह से दोस्तों की
वो पत्थर मिरे घर में आने लगे हैं
दोस्तों से मुलाक़ात की शाम है
ये सज़ा काट कर अपने घर जाऊँगा
दोस्तों से इस क़दर सदमे उठाए जान पर
दिल से दुश्मन की अदावत का गिला जाता रहा
ऐ दोस्त तुझ को रहम न आए तो क्या करूँ
दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा है
तरतीब दे रहा था मैं फ़हरिस्त-ए-दुश्मनान
यारों ने इतनी बात पे ख़ंजर उठा लिया
जो दोस्त हैं वो माँगते हैं सुल्ह की दुआ
दुश्मन ये चाहते हैं कि आपस में जंग हो
वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
दग़ा करे वो किसी से तो शर्म आए मुझे
इक नया ज़ख़्म मिला एक नई उम्र मिली
जब किसी शहर में कुछ यार पुराने से मिले
याद करने पे भी दोस्त आए न याद
दोस्तों के करम याद आते रहे
ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है
हुए तुम दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमाँ क्यूँ हो
Is this trouble not enough, to ruin one what else should be
If you are someone's friend then why needs heaven be his enemy
इलाही मिरे दोस्त हों ख़ैरियत से
ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं
दोस्त दो-चार निकलते हैं कहीं लाखों में
जितने होते हैं सिवा उतने ही कम होते हैं
मुट्ठियों में ख़ाक ले कर दोस्त आए वक़्त-ए-दफ़्न
ज़िंदगी भर की मोहब्बत का सिला देने लगे
बहुत छोटे हैं मुझ से मेरे दुश्मन
जो मेरा दोस्त है मुझ से बड़ा है
बहारों की नज़र में फूल और काँटे बराबर हैं
मोहब्बत क्या करेंगे दोस्त दुश्मन देखने वाले
दुश्मनों से पशेमान होना पड़ा है
दोस्तों का ख़ुलूस आज़माने के बाद
जिस बज़्म में साग़र हो न सहबा हो न ख़ुम हो
रिंदों को तसल्ली है कि उस बज़्म में तुम हो
ज़मानों बा'द मिले हैं तो कैसे मुँह फेरूँ
मिरे लिए तो पुरानी शराब हैं मिरे दोस्त
दोस्त हर ऐब छुपा लेते हैं
कोई दुश्मन भी तिरा है कि नहीं
जुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे
तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे
दोस्त दिल रखने को करते हैं बहाने क्या क्या
रोज़ झूटी ख़बर-ए-वस्ल सुना जाते हैं
'अर्श' किस दोस्त को अपना समझूँ
सब के सब दोस्त हैं दुश्मन की तरफ़