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हबीब जालिब

1928 - 1993 | लाहौर, पाकिस्तान

लोकप्रिय और क्रांतिकारी पाकिस्तानी शायर , राजनैतिक दमन के विरोध के लिए प्रसिद्ध

लोकप्रिय और क्रांतिकारी पाकिस्तानी शायर , राजनैतिक दमन के विरोध के लिए प्रसिद्ध

हबीब जालिब

ग़ज़ल 74

नज़्म 42

अशआर 27

अम्न था प्यार था मोहब्बत था

रंग था नूर था नवा था फ़िराक़

उन के आने के बाद भी 'जालिब'

देर तक उन का इंतिज़ार रहा

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और सब भूल गए हर्फ़-ए-सदाक़त लिखना

रह गया काम हमारा ही बग़ावत लिखना

दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुख सहते हैं

हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं

लोग डरते हैं दुश्मनी से तिरी

हम तिरी दोस्ती से डरते हैं

क़ितआ 17

पुस्तकें 17

चित्र शायरी 10

 

वीडियो 51

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

हबीब जालिब

हबीब जालिब

हबीब जालिब

हबीब जालिब

हबीब जालिब

हबीब जालिब

हबीब जालिब

हबीब जालिब

हबीब जालिब

हबीब जालिब

हबीब जालिब

हबीब जालिब

हबीब जालिब

हबीब जालिब

हबीब जालिब

हबीब जालिब

14-अगस्त

कहाँ टूटी हैं ज़ंजीरें हमारी हबीब जालिब

उट्ठो मरने का हक़ इस्तिमाल करो

जीने का हक़ सामराज ने छीन लिया हबीब जालिब

ज़र्रे ही सही कोह से टकरा तो गए हम

हबीब जालिब

ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना

ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना हबीब जालिब

दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुख सहते हैं

हबीब जालिब

मुशीर

मैं ने उस से ये कहा हबीब जालिब

मौलाना

बहुत मैं ने सुनी है आप की तक़रीर मौलाना हबीब जालिब

सर-ए-मिंबर वो ख़्वाबों के महल ता'मीर करते हैं

हबीब जालिब

अपनों ने वो रंज दिए हैं बेगाने याद आते हैं

हबीब जालिब

ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना

ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना हबीब जालिब

ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना

ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना हबीब जालिब

दस्तूर

दीप जिस का महल्लात ही में जले हबीब जालिब

बगिया लहूलुहान

हरियाली को आँखें तरसें बगिया लहूलुहान हबीब जालिब

भुला भी दे उसे जो बात हो गई प्यारे

हबीब जालिब

मुलाक़ात

जो हो न सकी बात वो चेहरों से अयाँ थी हबीब जालिब

मुलाक़ात

जो हो न सकी बात वो चेहरों से अयाँ थी हबीब जालिब

मुशीर

मैं ने उस से ये कहा हबीब जालिब

'मीर'-ओ-'ग़ालिब' बने 'यगाना' बने

हबीब जालिब

रेफ़्रेनडम

शहर में हू का आलम था हबीब जालिब

वही हालात हैं फ़क़ीरों के

हबीब जालिब

शेर से शाइरी से डरते हैं

हबीब जालिब

सहाफ़ी से

क़ौम की बेहतरी का छोड़ ख़याल हबीब जालिब

हम ने सुना था सहन-ए-चमन में कैफ़ के बादल छाए हैं

हबीब जालिब

ऑडियो 16

तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था

बड़े बने थे 'जालिब' साहब पिटे सड़क के बीच

शेर से शाइरी से डरते हैं

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