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नज़्म
ए'तिराफ़
शहरयारों से रक़ाबत का जुनूँ तारी था
बिस्तर-ए-मख़मल-ओ-संजाब थी दुनिया मेरी
असरार-उल-हक़ मजाज़
तंज़-ओ-मज़ाह
कन्हैया लाल कपूर
नज़्म
हसन कूज़ा-गर (2)
सर-ए-बाज़ार दरीचे में सर-ए-बिस्तर-ए-संजाब कभी
तू मेरे सामने आईना रही
नून मीम राशिद
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ग़ज़ल
क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को
मिरा होना बुरा क्या है नवा-संजान-ए-गुलशन को
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
तू ने ही रह न दिखाई तो दिखाएगा कौन
हम तिरी राह में गुमराह हुए बैठे हैं
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
है फ़हम उस का जो हर इंसान के दिल की ज़बाँ समझे
सुख़न वो है जिसे हर शख़्स अपना ही बयाँ समझे
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
मोहब्बत में नहीं है इब्तिदा या इंतिहा कोई
हम अपने इश्क़ को ही इश्क़ की मंज़िल समझते हैं