aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "شہزادی"
अम्न शहज़ादी
born.1999
शायर
अनअम शहज़ादी
शहज़ाद अहमद
1932 - 2012
फ़रहत शहज़ाद
शहज़ादी कुलसूम
1928 - 1949
लेखक
अंदलीब शादानी
1904 - 1969
नासिर शहज़ाद
1937 - 2007
परवेज़ शाहिदी
1910 - 1968
सीमा फ़रीदी
शहज़ाद क़ैस
born.1971
शहज़ाद नय्यर
born.1973
आरिफ़ा शहज़ाद
सलीम शहज़ाद
born.1949
क़मर रज़ा शहज़ाद
born.1958
अनवर शादानी
born.1947
तू ने क्या क़िंदील जला दी शहज़ादीसुर्ख़ हुई जाती है वादी शहज़ादी
शुजाअ'त मामूँ की उ'म्र का मसअला बड़ी नाज़ुक सूरत इख़्तियार कर गया। क़मर आरा और नूर ख़ाला के लिए तो वो अभी लड़का ही थे। इसलिए वो तो मारे हौल के बरसों की गिनती में बार-बार घपला डाल देतीं। क्योंकि उनकी उ'म्र का हिसाब लग जाने से ख़ुद ख़ालाओं की...
वो कहानी कि अभी सूइयाँ निकलीं भी न थींफ़िक्र हर शख़्स को शहज़ादी के अंजाम की थी
''कहानी वो जिस में एक शहज़ादी चाट लेती हैअपनी अंगुश्तरी का हीरा,
उसने उन लड़कियों में से एक को मुंतख़ब करना चाहा... देर तक वो ग़ौर करता रहा... एक लड़की बड़ी शरीर थी... दूसरी उससे कम। उसने सोचा शरीर अच्छी रहेगी जो उसको शरारतों का सबक़ दे सके। ये शरीर लड़की ख़ूबसूरत थी, उसके बदन के आज़ा भी बहुत मुनासिब थे। बारिश...
रचनाकार की भावुकता एवं संवेदनशीलता या यूँ कह लीजिए कि उसकी चेतना और अपने आस-पास की दुनिया को देखने एवं एहसास करने की कल्पना-शक्ति से ही साहित्य में हँसी-ख़ुशी जैसे भावों की तरह उदासी का भी चित्रण संभव होता है । उर्दू क्लासिकी शायरी में ये उदासी परंपरागत एवं असफल प्रेम के कारण नज़र आती है । अस्ल में रचनाकार अपनी रचना में दुनिया की बे-ढंगी सूरतों को व्यवस्थित करना चाहता है,लेकिन उसको सफलता नहीं मिलती । असफलता का यही एहसास साहित्य और शायरी में उदासी को जन्म देता है । यहाँ उदासी के अलग-अलग भाव को शायरी के माध्यम से आपके समक्ष पेश किया जा रहा है ।
बच्चों की भावनाओं को दर्शाती हुई शायरी
रूमान और इश्क़ के बग़ैर ज़िंदगी कितनी ख़ाली ख़ाली सी होती है इस का अंदाज़ा तो आप सबको होगा ही। इश्क़चाहे काइनात के हरे-भरे ख़ूबसूरत मनाज़िर का हो या इन्सानों के दर्मियान नाज़ुक ओ पेचीदा रिश्तों का इसी से ज़िंदगी की रौनक़ मरबूत है। हम सब ज़िंदगी की सफ़्फ़ाक सूरतों से बच निकलने के लिए मोहब्बत भरे लम्हों की तलाश में रहते हैं। तो आइए हमारा ये शेरी इन्तिख़ाब एक ऐसा निगार-ख़ाना है जहाँ हर तरफ़ मोहब्बत , लव, इश्क़ , बिखरा पड़ा है।
शहज़ादीشہزادی
princess
Gazal ki Babat
वेन्स केसरी
शायरी तन्क़ीद
Deewan-e-Ghalib
मिर्ज़ा ग़ालिब
दीवान
Badar Shahzadi
अशरफ़ सबूही
कहानी
Urdu Shairi Ka Tanqeedi Mutalia
सुंबुल निगार
आलोचना
Guldasta-e-Bait Bazi
वसीम इक़बाल सिद्दीक़ी
बैत-बाज़ी
शरह-ए-दीवान-ए-ग़ालिब
यूसुफ़ सलीम चिश्ती
व्याख्या
Sher-e-Shor Angez
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
यानी
जौन एलिया
काव्य संग्रह
Goya
Guman
Bang-e-Dara
अल्लामा इक़बाल
शायरी
Allama Iqbal Ke Ashaar
अशआर
लेकिन
Urdu Ghazal Ka Tareekhi Irtiqa
ग़ुलाम आसी रशीदी
शहज़ादी तिरे माथे पर ये ज़ख़्म रहेगालेकिन इस को चूमने वाला फिर नहीं होगा
बाप बोझ ढोता था क्या जहेज़ दे पाताइस लिए वो शहज़ादी आज तक कुँवारी है
छोड़ो जाओ कौन कहाँ की शहज़ादीशहज़ादी के हाथ में छाले होते हैं
जैसे यूनान के मग़रूर ख़ुदावंदों नेरेगज़ारान-ए-हब्श की किसी शहज़ादी को
भाई चिल्लाए। "ओ पगला। ढिंडोरा। लो तुम्हें ढिंडोरा पीट कर दिखाएँ। ये देखो इस तरफ़ डगमग डगमग।" बद्दू फिर चिल्लाने लगा, "मैं जानता हूँ तुम मेज़ बजा रहे हो न?" "हाँ हाँ इसी तरह ढिंडोरा पिटता है न।" भाई साहिब कह रहे थे "कुश्तियों में, अच्छा बद्दू तुमने कभी कुश्ती...
शहज़ादी तुझे कौन बताए तेरे चराग़-कदे तककितनी मेहराबें पड़ती हैं कितने दर आते हैं
गोया कोई ‘कामिक’ या बातस्वीर नफ़सियाती अफ़साना सामने खुला हुआ है। क्या देखता हूँ कि डाक्टर मेरी लाश पर इंजेक्शन की पिचकारियों से लड़ रहे हैं और लहूलुहान हो रहे हैं। उधर कुछ मरीज़ अपनी अपनी नर्स को क्लोरोफ़ार्म सुंघा रहे हैं। ज़रा दूर एक लाइलाज मरीज़ अपने डाक्टर को...
यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थीवो इस वादी की शहज़ादी थी और शाहाना रहती थी
कॉलिज में शाहिदा हसीनतरीन लड़की थी। उसको अपने हुस्न का एहसास था। इसीलिए वो किसी से सीधे मुँह बात न करती और ख़ुद को मुग़लिया ख़ानदान की कोई शहज़ादी समझती। उसके ख़द्द-ओ-ख़ाल वाक़ई मुग़लई थे। ऐसा लगता था कि नूरजहां की तस्वीर जो उस ज़माने के मुसव्विरों ने बनाई थी,...
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