aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
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परिणाम "قوم پرست"
क़ौम परस्त प्रेस, बरेली
पर्काशक
“क्यों क्या हो गया?”“डाक्टर लोग बोलता... कि दारू बहुत पिया। इस के कारन मस्तक फिर गया। उधर पागल साहब का हस्पताल है। उच्चा, एक दम फ़रस्ट क्लास, उधर उस को डाला।”
रात की हवा में ख़ुन्की बढ़ चुकी थी। नीम के पत्ते बड़े पुर-असरार तरीक़े से साएँ-साएँ कर रहे थे। हाँ ज़िंदगी में बे-पायाँ उदासी थी और वीराना और तारीकी।महल्ले के मकानों में मद्धम रौशनियाँ झिलमिला रही थीं।
शायरी में वतन-परस्ती के जज़्बात का इज़हार बड़े मुख़्तलिफ़ ढंग से हुआ है। हम अपनी आम ज़िंदगी में वतन और इस की मोहब्बत के हवाले से जो जज़्बात रखते हैं वो भी और कुछ ऐसे गोशे भी जिन पर हमारी नज़र नहीं ठहरती इस शायरी का मौज़ू हैं। वतन-परस्ती मुस्तहसिन जज़्बा है लेकिन हद से बढ़ी हुई वत-परस्ती किस क़िस्म के नताएज पैदा करती है और आलमी इन्सानी बिरादरी के सियाक़ में उस के क्या मनफ़ी असरात होते हैं इस की झलक भी आपको इस शेअरी इंतिख़ाब में मिलेगी। ये अशआर पढ़िए और इस जज़बे की रंगारंग दुनिया की सैर कीजिए।
Qaum Parast Talib Ilm
मोहम्मद अब्दुल ग़फ़्फ़ार
क़ाैम परस्त
द्विजेन्द्रलाल राय
नाटक / ड्रामा
Madhat Pasha
मीरज़ा मोहम्मद इसहाक़ बेग
जीवनी
Moulana Abul Kalam Aazad Aur Quam Parast Musalmano Ki Siyasat
फ़ारूक़ क़ुरेशी
Qaum Parast
सुदर्शन
Qaum Parast Talib-e-Ilm
Maulana Abul Kalam Azad Aur Qaum Parast Musalmanon Ki Siyasat
Proltari Bain-ul-aqwamiyat Aur Burozwa Qaum Parasti
मार्क्स एंगेल्स लेनिन
Barre Sagheer Pak-o-Hind Mein Qaum Parasti Ki Tahreeken Aur Unki Tareekh
अब्दुल्लाह मालिक
इतिहास
आया नहीं ये लफ़्ज़ तो हिन्दी ज़बाँ के बीचतो उनकी मुराद जयशंकर प्रशाद और रामचन्द्र शुक्ल की हिन्दी से न थी, और न टी.वी. और आकाशवाणी की हिन्दी से थी। लफ़्ज़ “हिन्दी” से ‘मीर’ वही ज़बान मुराद ले रहे थे जिसमें वो शे'र कहते थे और जिसे हम आज “उर्दू” कहते हैं।
इसमें शक नहीं कि हमारे तअल्लुक़ात कुत्तों से ज़रा कशीदा ही रहे हैं लेकिन हमसे क़सम ले लीजिए जो ऐसे मौक़े पर हमने कभी सत्याग्रह से मुँह मोड़ा हो। शायद आप इसको तअल्ली समझें लेकिन ख़ुदा शाहिद है कि आज तक कभी किसी कुत्ते पर हाथ उठ ही न सका। अक्सर दोस्तों ने सलाह दी कि रात के वक़्त लाठी, छड़ी ज़रूर हाथ में रखनी चाहिए कि दाफ़े-उल-बल्लियात है लेकिन हम किसी से ख़्व...
15 अगस्त 1947ई- को अमृतसर आज़ाद हुआ। पड़ोस में लाहौर जल रहा था मगर अमृतसर आज़ाद था और उसके मकानों, दुकानों बाज़ारों पर तिरंगे झंडे लहरा रहे थे, अमृतसर के क़ौम परस्त मुस्लमान इस जश्न-ए-आज़ादी में सबसे आगे थे, क्योंकि वो आज़ादी की तहरीक में सबसे आगे रहे थे। ये अमृतसर अकाली तहरीक ही का अमृतसर ना था ये अहरारी तहरीक का भी अमृतसर था। ये डाक्टर सत्य पाल का अमृत...
इस मुआ’मले में महात्मा गाँधी और इक़बाल भी उनके बा’द हैं। होना भी चाहिए, क्योंकि अकबर की पैदाइश 1846 की है, महात्मा गाँधी 1869 में पैदा हुए और इक़बाल 1877 में। मैंने एक मज़्मून में इसी तहज़ीबी बोहरान का ज़िक्र किया है जिसका एहसास अकबर को था और जिसकी बिना पर उन्होंने अंग्रेज़ी सामराज की अ’लामतों को मत्ऊ’न किया। आज की सोहबत में इससे ज़रा मुख़्तलिफ़ मज़्मून...
अ'लीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी की तारीख़ में 1937 यादगार रहेगा। क्योंकि इस साल हिंदुस्तानी मुसलमानों के वाहिद दार-उल-उलूम में सरकारी तो तौर पर मख़लूत ता'लीम की इबतिदा हुई। ये क़िस्सा भी अ'जीब है कि किस तरह यूनीवर्सिटी के अरबाब हल-ओ-अक़द इस सनसनी-खेज़ तबदीली के लिए क़ानूनन मजबूर किए गए। निनानवे साल पहले हिंदोस्तान के मशहूर क़ौम-परस्त जर्नलिस्ट और समाजी कार-क...
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