aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "گونج"
बाबा फ़रीद
1179 - 1266
शायर
अख़्तर डेक्कन प्रेस अफ़ज़लगंज, हैदराबाद
पर्काशक
फ़रीदुद्दीन गंजशकर
1760 - 1850
लेखक
गूँज पब्लीकेशंज़, निज़ामाबाद
गूंज पब्लिकेशन्स, निजामाबाद
दाता गंज बख़्श
मॉडर्न पब्लिशिंग हाउस, दरियागंज, नई दिल्ली
हशर गंज़ मुरादाबादी
Shaikh Ali Hujweri
अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू किशनगंज, बिहार
वसन्त गोविन्द देशमुख
ख़ानक़ाहे-नेमतिया, गोपालगंज
गुलज़ार-ए-अदब, नेपालगंज
दाता गंज बख़्श, लाहौर
अल मआरिफ़ गंज बख़्श, लाहौर
टूट गया जब दिल तो फिर ये साँस का नग़्मा क्या मा'नीगूँज रही है क्यूँ शहनाई जब कोई बारात नहीं
अब उसका वतन वो था जिसका पानी तक भी उसने कभी नहीं पिया था, पर अब उसकी ख़ातिर, एक दम उसके कांधे पर बंदूक़ रख कर ये हुक्म दे दिया गया था कि जाओ, ये जगह जहां तुमने अभी अपने घर के लिए दो ईंटें भी नहीं चुनीं, जिसकी हवा...
दो मारवाड़ी जो कचहरी में अपने दीवानी मुक़द्दमे के सिलसिले में आए थे घर जाते हुए जदीद आईन यानी इंडिया ऐक्ट के मुतअल्लिक़ आपस में बातचीत कर रहे थे। “सुना है कि पहली अप्रैल से हिंदुस्तान में नया क़ानून चलेगा... क्या हर चीज़ बदल जाएगी?”...
“हथ लाईयाँ कुम्हलाँ नी लाजवंती दे बूटे!” अभी गीत की आवाज़ लोगों के कानों में गूँज रही थी। अभी सुबह भी नहीं हो पाई थी और मोहल्ला मुल्ला शकूर के मकान 414 की बिधवा अभी तक अपने बिस्तर में कर्बनाक सी अंगड़ाइयाँ ले रही थी कि सुंदर लाल का “गिराएँ”...
एक अजीब क़िस्म का खिंचाव उसके आज़ा में पैदा हो गया था जिसके बाइस उसे बहुत तकलीफ़ होती थी। इस तकलीफ़ की शिद्दत जब बढ़ जाती तो उसके जी में आता कि अपने आपको एक बड़े हावन में डाल दे और किसी से कहे, “मुझे कूटना शुरू कर दो।” बावर्चीख़ाने...
कई दशक बीत गए लेकिन भारतीय गायकी के महानायक मोहम्मद रफी आज भी अपनी आवाज़ के जादू से सभी के दिलों पर राज कर रहे हैं। उनके रूमानी और भक्ति गीतों की गूँज आज भी सुनाई देती है। यहाँ हम उन मशहूर उर्दू शायरों की ग़ज़लें लेकर आए हैं, जिन्हें मुहम्मद रफ़ी ने गाया था। उन्होंने उन ग़ज़लों की ख़ूसूरती में वो जादू भर दिया है जो सुनने वालों को देर तक मंत्रमुग्ध रखता है।
गूँजگونج
Echo, Roar
Goonj
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
काव्य संग्रह
Fawaid-us-Salkeen
उपदेश
Kashf-ul-Haqaiq
सय्यद शराफ़त नाैशाही
शोध / समीक्षा
श्लोक शैख़ बाबा फ़रीद गंज शकर
शैख़ फ़रीद
व्याख्या
Baba Fareed Ganj Shakar
सय्यद अफ़ज़ल हैदर
चिश्तिय्या
Tazkira-e-Hazrat Maulana Fazl-e-Rahman Ganj Muradabadi
अबुल हसन अली नदवी
जीवनी
Intikhab-e-Kalam Baba Fareed
शायरी
Kalam Baba Fareed Ganj-e-Shakar
मोहम्मद यूनुस हसरत
Malfoozat-e-Hazrat Baba Fareeduddin Ganj Shakar
हज़रत बदरुद्दीन इसहाक़
सूफ़ीवाद / रहस्यवाद
Baba Shaikh Faridudeen Ganj Shakar
गोर बचन सिंह तालिब
Panj Ganj Malfuzat KHwajgan-e-Chisht Ahl-e-Bahisht
अननोन ऑथर
Intikhab-e-Ganj Shareef
सय्यद हाजी मोहम्मद नोशा
Anwar-ul-Auliya
Ganj-ul-Asrar
हज़रत सुल्तान बाहू
Nangi Awazon Ki Goonj
उबैद क़मर
अजब सी गूँज उठती दर-ओ-दीवार से हर-दमये ख़्वाबों का ख़राबा है यहाँ सोया नहीं जाता
उस का नहीं कोई जवाबयही काफ़ी है कि बातिन की सदा गूँज उठे!
طائر ہوا میں محو ہنر سبزہ زار میںجنگل کے شیر گونج رہے تھے کچھار میں
गूँज कर ऐसे लौटती है सदाकोई पूछे हज़ारों मीलों से
क्या हिन्द का ज़िंदाँ काँप रहा है गूँज रही हैं तक्बीरेंउकताए हैं शायद कुछ क़ैदी और तोड़ रहे हैं ज़ंजीरें
मेरे लहू में गूँज रहा है हर एक लफ़्ज़मैं ने रगों के दश्त में पाले तुम्हारे ख़त
यहीं था गूँज उठा वन्दे-मातरम उस दिनहै जुरअतों का सफ़र वक़्त की है राहगुज़र
शाकिरा ने शौहर की तरफ़ निगाह-ए-मलामत से देखकर कहा, “हाँ और क्या। मुझे अपने बच्चे की बीमारी का क़लक़ थोड़े ही है। मैं ने शर्म के मारे तुमसे कहा नहीं लेकिन मेरे दिल में बार-बार ये ख़याल पैदा हुआ है अगर मुझे दाया के मकान का पता मा’लूम होता तो...
‘‘क्या सुनाऊँ, मैं तो सिर्फ क्लासिकी म्यूज़िक ही बजाती हूँ।’’ ‘‘हाय...पॉप...नहीं?’’ लड़कियों ने गुल मचाया... ‘‘अच्छा कोई इंडियन फ़िल्म सांग ही बजाओ...’’...
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