aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "گڈاRekhta"
दी कलचरल अकादमी, गया
पर्काशक
मतबूआ तबा अहल-ए-जहाँ, गया
शोबा-ए-उर्दू मगध यूनिवर्सिटी, गया
असर पब्लिकेशन्स, गया, इंडिया
वेंकट रमन गोड्डा
लेखक
बज़्म-ए-अदब, गया
प्रकाश गृह, बनारस
मतबा मुनिमी, गया
दानिशगाह इस्लामी, अलीगढ़
परवेज़ अहमद एडवोकेट, गया
सेन्टर फ़ार साइंटिफ़िक स्टडीज़ एण्ड कल्चरल स्टडीज़, गया
मकतबा आदर्श, गया
किरन इशाअत हाउस, गया
बाबू गया प्रशाद
संपादक
मोर्चा प्रेस बैरागी, गया
ख़ुद को जाना जुदा ज़माने सेआ गया था मिरे गुमान में क्या
बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगेइक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा
न ऐसी ख़ुश-लिबासियाँकि सादगी गिला करे
कभी तक़दीर का मातम कभी दुनिया का गिलामंज़िल-ए-इश्क़ में हर गाम पे रोना आया
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन परवो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
रेख़्ता ने अपने पाठकों के अनुभव से, प्राचीन और आधुनिक कवियों की उन पुस्तकों का चयन किया है जो सबसे अधिक पढ़ी जाती हैं.
उर्पदू में र्तिबंधित पुस्तकों का चयन
मंशी नवल किशोर ने 1857 के गदर के बाद भारत की संस्कृति और साहित्यिक धरोहर को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके प्रेस ने 1858 से 1950 तक धर्म, इतिहास, साहित्य, विज्ञान और दर्शन पर लगभग छह हजार किताबें प्रकाशित की। रेख़ता पर मंशी नवल किशोर प्रेस की किताबों का एक क़ीमती संग्रह उपलब्ध है।
Urdu Ka Ibtedai Zamana
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
आलोचना
Makhzan-e-Adab
मौलवी मोहम्मद अब्दुल शहीद
पाठ्य पुस्तक
Deewan-e-Hazrat Ali
हज़रत अली
दीवान
Aur Insan Mar Gaya
रामा नन्द सागर
फ़िक्शन
Nai Arab Duniya
मोहम्मद यूनुस निगरामी नदवी
विश्व इतिहास
Hindisi Raushni
हमीद असकरी
विज्ञान
Mushahidat
होश बिलग्रामी
आत्मकथा
Insani Duniya Par Musalmanon Ki Urooj-o-Zawal Ka Asar
अबुल हसन अली नदवी
Hamari Paheliya
सय्यद यूसुफ़ बुख़ारी
पहेली
Aur Main Sochta Rah Gaya
अजमल सिराज
ग़ज़ल
Nasr Nazm Aur Sher
मंज़र अब्बास नक़वी
मज़ामीन / लेख
Angrezi Istilahon Aur Muhavaron Ki Jadeed Sahafati Farhang
सैय्यद राशिद अशरफ़
शब्द-कोश
Eid Gah
प्रेमचंद
कमीं गाह
शौकत सिद्दीक़ी
नॉवेल / उपन्यास
Aurt Islami Muashre Mein
सय्यद जलालुद्दीन उमरी
इस्लामियात
अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़ममक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगरलोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
आ गया गर वस्ल की शब भी कहीं ज़िक्र-ए-फ़िराक़वो तिरा रो रो के मुझ को भी रुलाना याद है
तू भी हीरे से बन गया पत्थरहम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ
हुज़ूर-ए-यार हुई दफ़्तर-ए-जुनूँ की तलबगिरह में ले के गरेबाँ का तार तार चले
हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गईशौक़ में कुछ नहीं गया शौक़ की ज़िंदगी गई
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गयाइतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
तुम मुझ को जान कर ही पड़ी हो अज़ाब मेंऔर इस तरह ख़ुद अपनी सज़ा बन गया हूँ मैं
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगामसअला फूल का है फूल किधर जाएगा
दिल तो चमक सकेगा क्या फिर भी तराश के देख लेंशीशा-गिरान-ए-शहर के हाथ का ये कमाल भी
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