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ग़ज़ल
वली काकोरवी
ग़ज़ल
सूफ़ी ये सहव महव हुए सद्द-ए-बाब-ए-उंस
क्या इम्बिसात कार-गह-ए-हसत-ओ-बूद में
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
नज़्म
परछाइयाँ
उस शाम मुझे मालूम हुआ इस कार-गह-ए-ज़र्दारी में
दो भोली-भाली रूहों की पहचान भी बेची जाती है