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नज़्म
नज़्र-ए-अलीगढ़
ज़र्रात का बोसा लेने को सौ बार झुका आकाश यहाँ
ख़ुद आँख से हम ने देखी है बातिल की शिकस्त-ए-फ़ाश यहाँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
भारत के मुसलमान
ज़र्रात में कलियर के फ़रोज़ाँ तिरी तस्वीर
हांसी की फ़ज़ाओं में तिरे कैफ़ की तासीर
जगन्नाथ आज़ाद
ग़ज़ल
ज़िंदगी रेत के ज़र्रात की गिनती थी 'नदीम'
क्या सितम है कि अदम भी वही सहरा निकला
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
याद आ ही जाती है अक्सर दिल-ए-बर्बाद की
यूँ तो सच है चंद ज़र्रात-ए-परेशाँ कुछ नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
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नज़्म
नक़्क़ाद
ज़ुल्मत-ए-इबहाम में परछाईं तफ़सीलात की
पेच ओ ख़म खाते बगूले में चमक ज़र्रात की
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तन्हा
इब्न-ए-मरयम का वो जल्वा जो कलीसा में नहीं
रांदा-ए-मौज भी हैं मुजरिम-ए-ज़र्रात भी हैं