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ग़ज़ल
फ़सील-ए-शहर-ए-अना में शिगाफ़ मैं ने किया
ये कार-नामा ख़ुद अपने ख़िलाफ़ मैं ने किया
शकील इबन-ए-शरफ़
ग़ज़ल
कितने मसरूफ़ हैं मसरूर नहीं फिर भी ये लोग
है ये क्या सिलसिला-ए-कार-ए-ज़ियाँ हम-नफ़सो
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
'क़ुदसी' तो अकेला नहीं मैदान-ए-सुख़न में
हर कूचा-ओ-बाज़ार में फ़न-कार बहुत हैं