आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "मज़हब"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "मज़हब"
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
क़ौम मज़हब से है मज़हब जो नहीं तुम भी नहीं
जज़्ब-ए-बाहम जो नहीं महफ़िल-ए-अंजुम भी नहीं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
'मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो
क़श्क़ा खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम किया
मीर तक़ी मीर
नज़्म
तराना-ए-हिन्दी
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़
इस ढंग पर है ज़ोर तो ये ढंग ही सही
ज़ालिम की कोई ज़ात न मज़हब न कोई क़ौम
साहिर लुधियानवी
पृष्ठ के संबंधित परिणाम "मज़हब"
अन्य परिणाम "मज़हब"
ग़ज़ल
दीन से दूर, न मज़हब से अलग बैठा हूँ
तेरी दहलीज़ पे हूँ, सब से अलग बैठा हूँ
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
उद्धरण
सआदत हसन मंटो
नज़्म
तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा
अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं है
तुझ को किसी मज़हब से कोई काम नहीं है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ख़िज़्र-ए-राह
तुर्क-ए-ख़र्गाही हो या आराबी-ए-वाला-गुहर
नस्ल अगर मुस्लिम की मज़हब पर मुक़द्दम हो गई
अल्लामा इक़बाल
मर्सिया
हम पंचा न रुस्तम है न सोहराब है मेरा
मर्हब बिन-अब्दुलक़मर अलक़ाब है मेरा
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
शेर
'मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो
क़श्क़ा खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम किया
मीर तक़ी मीर
नज़्म
26 जनवरी
मज़हब का रोग आज भी क्यूँ ला-'इलाज है
वो नुस्ख़ा-हा-ए-नादिर-ओ-नायाब क्या हुए