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ग़ज़ल
आमिर अमीर
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ग़ज़ल
ग़म के अँधियारे में तुझ को अपना साथी क्यूँ समझूँ
तू फिर तू है मेरा तो साया भी मेरे साथ नहीं
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
परिंदे की फ़रियाद
क्या बद-नसीब हूँ मैं घर को तरस रहा हूँ
साथी तो हैं वतन में मैं क़ैद में पड़ा हूँ
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ये सजा-सजाया घर साथी मिरी ज़ात नहीं मिरा हाल नहीं
ऐ काश कभी तुम जान सको जो इस सुख ने आज़ार दिया