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कुल्लियात
जाने दे मत इस क़दर अब ज़ुल्फ़-ओ-ख़त्त-ओ-ख़ाल देख
हाल कुछ भी तुझ में है ऐ 'मीर' अपना हाल देख
मीर तक़ी मीर
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शेर
वहाँ ज़ेर-ए-बहस आते ख़त-ओ-ख़ाल ओ ख़ू-ए-ख़ूबाँ
ग़म-ए-इश्क़ पर जो 'अनवर' कोई सेमिनार होता
अनवर मसूद
नज़्म
बस ये बला-ए-इश्क़
या तो ख़ुदा हसीनों को कुछ ख़त्त-ओ-ख़ाल दे
वर्ना उन्हें ख़ुदाई से बाहर निकाल दे
ज़रीफ़ जबलपूरी
नज़्म
तज्दीद-ए-अमल
कर फ़िक्र-ए-अमल ज़िक्र-ए-ख़त-ओ-ख़ाल अबस है
ऐ 'फ़ैज़' ज़रा अपने ख़यालात बदल डाल
फ़ैज़ लुधियानवी
ग़ज़ल
नुक्ता-सरा थे क्या हुआ 'हावी' मियाँ तुम्हें
शेर-ओ-सुख़न को वक़्फ़-ए-ख़त-ओ-ख़ाल कर दिया