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नज़्म
रक़ीब से!
तुझ पे बरसा है उसी बाम से महताब का नूर
जिस में बीती हुई रातों की कसक बाक़ी है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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विषय
बाम
बाम शायरी
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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
बाप का इल्म न बेटे को अगर अज़बर हो
फिर पिसर क़ाबिल-ए-मीरास-ए-पिदर क्यूँकर हो
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जो नक़ाब-ए-रुख़ उठा दी तो ये क़ैद भी लगा दी
उठे हर निगाह लेकिन कोई बाम तक न पहुँचे