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ग़ज़ल
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
तेरा ही अक्स-ए-रुख़ सही सामने तेरे आए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तिश्ना-ए-ख़ूँ है अपना कितना 'मीर' भी नादाँ तल्ख़ी-कश
दम-दार आब-ए-तेग़ को उस के आब-ए-गवारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
अक्स-ए-रुख़्सार ने किस के है तुझे चमकाया
ताब तुझ में मह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी
बहादुर शाह ज़फ़र
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नज़्म
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
लिल्लाह हबाब-ए-आब-ए-रवाँ पर नक़्श-ए-बक़ा तहरीर न कर
मायूसी के रमते बादल पर उम्मीद के घर तामीर न कर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
ए'तिराफ़
दश्त-ए-पुर-ख़ार को फ़िरदौस-ए-जवाँ जाना था
रेग को सिलसिला-ए-आब-ए-रवाँ जाना था
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
शाम के रंगों में रख कर साफ़ पानी का गिलास
आब-ए-सादा को हरीफ़-ए-रंग-ए-बादा कर लिया
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
दो इश्क़
वो अक्स-ए-रुख़-ए-यार से लहके हुए अय्याम
वो फूल सी खुलती हुई दीदार की साअ'त