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ग़ज़ल
सलीक़ा जिन को होता है ग़म-ए-दौराँ में जीने का
वो यूँ शीशे को हर पत्थर से टकराया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
शेर
सलीक़ा जिन को होता है ग़म-ए-दौराँ में जीने का
वो यूँ शीशे को हर पत्थर से टकराया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
नज़्म
बन-बास
एक इक मोड़ पे आलाम ओ मसाइब के पहाड़
एक इक गाम पे आफ़ात से टकराया हूँ
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
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विषय
तजरबा
तजरबा शायरी
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ग़ज़ल
तिरे मस्लक में क्या इतना भी समझाया नहीं जाता
फ़क़ीरों और दरवेशों से टकराया नहीं जाता
नवाज़ असीमी
ग़ज़ल
वो नाला फ़लक से टकराया वो 'आरज़ू' इक तारा टूटा
दुश्मन की तरफ़ जो लपका था शोला वो मुझी पर आ के गिरा
आरज़ू लखनवी
नज़्म
मस्लहत
उन्हीं शो'लों की तमाज़त का सहारा ले कर
बरबरिय्यत के हर ऐवान से टकराया हूँ
नरेश कुमार शाद
नज़्म
जमुना
हो के मुज़्तर आह जोश-ए-इज़्तिराब-ए-दिल से क्या
यूँही टकराया करेगी सर को तू साहिल से क्या
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
इक सितारा आदर्श का
कैफ़-ए-आलमगीर का अरमाँ मिला
जिस से वावैला नशेबों का न टकराया कभी