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नज़्म
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया
साहिर लुधियानवी
शेर
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो सुब्ह कभी तो आएगी
इंसानों की इज़्ज़त जब झूटे सिक्कों में न तौली जाएगी
वो सुब्ह कभी तो आएगी
साहिर लुधियानवी
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ग़ज़ल
माना जीवन में औरत इक बार मोहब्बत करती है
लेकिन मुझ को ये तो बता दे क्या तू औरत ज़ात नहीं
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
रूह भी होती है उस में ये कहाँ सोचते हैं
साहिर लुधियानवी
शेर
बताऊँ क्या तुझे ऐ हम-नशीं किस से मोहब्बत है
मैं जिस दुनिया में रहता हूँ वो इस दुनिया की औरत है