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हास्य शायरी
ये पिल पड़ती हैं हम पर जब भी हम दफ़्तर से आते हैं
हलाकू-ख़ाँ से या चंगेज़-ख़ाँ से इन के नाते हैं
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
मुफ़्लिसी
जब आदमी के हाल पे आती है मुफ़्लिसी
किस किस तरह से उस को सताती है मुफ़्लिसी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मुझे शर्मिंदा रखते हैं
ये हर शब सोच कर सोता हूँ आने वाली सुब्हों में
गुलों से पत्तियों से ओस की बूँदें चुरानी हैं
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
हिण्डोला
दयार-ए-हिन्द था गहवारा याद है हमदम
बहुत ज़माना हुआ किस के किस के बचपन का