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नज़्म
नज़्म इत्तिहाद
फ़स्ल-ए-बहार आई मगर हम हैं और ग़म
हर सम्त से हैं घेरे हुए सदमा-ओ-अलम
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
ग़ज़ल
दुनिया-ए-ग़म को ज़ेर-ओ-ज़बर कर सके तो कर
रहमत की मुझ पे एक नज़र कर सके तो कर
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
ग़ज़ल
शाम-ए-तकलीफ़ की दुनिया में सहर हो तो सही
हाए कम-बख़्त कहीं दर्द-ए-जिगर हो तो सही
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
ग़ज़ल
लीजिए ख़त्म हुआ गर्दिश-ए-तक़दीर का रंग
आइए देखिए मिटती हुई तस्वीर का रंग
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
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ग़ज़ल
न फ़लक होगा न ये कूचा-ए-क़ातिल होगा
मिरे कहने में किसी दिन जो मिरा दिल होगा
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
ग़ज़ल
कहना न माना कूचा-ए-क़ातिल में रह गया
अच्छा हुआ जो दिल किसी मुश्किल में रह गया
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
ग़ज़ल
उल्फ़त-ए-आरिज़-ए-लैला में परेशाँ निकला
क़ैस मानिंद-ए-सहर चाक-गरेबाँ निकला
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
ग़ज़ल
दाद मिलती नज़र-ए-अहल-ए-नज़र से पहले
मौत आती जो कहीं दिल को जिगर से पहले
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
ग़ज़ल
जौर-ए-ज़मीं न था सितम-ए-आसमाँ न था
वो भी था वक़्त जब कि ग़म-ए-दो-जहाँ न था
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
ग़ज़ल
ख़त्म होगा अब सफ़र पेश-ए-नज़र है रू-ए-दोस्त
आ रही है आज की मंज़िल से मुझ को बू-ए-दोस्त
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
ग़ज़ल
मैं शम्अ-ए-बज़्म-ए-आलम-ए-इम्काँ किया गया
इंसानियत को देख के इंसाँ किया गया
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
ग़ज़ल
अच्छा हुआ ये वक़्त तो आना ज़रूर था
मुद्दत से कश्मकश में दिल-ए-ना-सुबूर था
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
ग़ज़ल
आख़िर न चली कोई भी तदबीर हमारी
बन बन के बिगड़ने लगी तक़दीर हमारी