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कुल्लियात
क्या क्या जहाँ असर था सो अब वाँ अयाँ नहीं
जिन के निशाँ थे फ़ीलों पर उन का निशाँ नहीं
मीर तक़ी मीर
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कुल्लियात
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
दिल्ली हुई है वीराँ सूने खंडर पड़े हैं
वीरान हैं मोहल्ले सुनसान घर पड़े हैं