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नज़्म
ताज-महल
मुर्दा-शाहों के मक़ाबिर से बहलने वाली
अपने तारीक मकानों को तो देखा होता
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मेरा घर मेरा वीराना
मेरे सय्याह बहुत तू ने मक़ाबिर देखे
सच कहा सदियों में इक ताज-महल बनता है
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
हसरतें रोती रहें दिल में मुजाविर की तरह
दिल मगर चुप ही रहा लौह-ए-मक़ाबिर की तरह
मुसव्विर सब्ज़वारी
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ग़ज़ल
ऐ बसा कोहना इमारात-ए-मक़ाबिर जिन के
लोगों ने चोब-ओ-चगल के लिए तोड़े पत्थर
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
नज़्म
नक़्श-ए-फ़र्यादी
हुल्क़ूम तक हैं काट डाले
और सच्चे नेक लोगों और वलियों के मक़ाबिर तोड़ के
सलाहुद्दीन परवेज़
नज़्म
दाएरों की फ़सीलों से डरते हो
दाएरों के मक़ाबिर में सो जाएँगे
दाएरे ख़्वाहिशों के मक़ाबिर सही
शबनम मुनावरी
नज़्म
हिन्दी मुसलमान
चप्पे-चप्पे पर हैं मआबिद और उन के मीनार
कूचे-कूचे में हैं मक़ाबिर और उन के अनवार
मासूम शर्क़ी
नज़्म
ताबूत में बंद हवास
आग और ख़ून की रेशमी छतरियाँ खोलती हैं
मक़ाबिर की बे-गोश तारीकियों में