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ग़ज़ल
मुझे छोड़ दे मिरे हाल पर तिरा क्या भरोसा है चारा-गर
ये तिरी नवाज़िश-ए-मुख़्तसर मिरा दर्द और बढ़ा न दे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
सबा अकबराबादी
नज़्म
हम जो तारीक राहों में मारे गए
जिन की राह-ए-तलब से हमारे क़दम
मुख़्तसर कर चले दर्द के फ़ासले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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शेर
मुख़्तसर ये है हमारी दास्तान-ए-ज़िंदगी
इक सुकून-ए-दिल की ख़ातिर उम्र भर तड़पा किए
मुईन अहसन जज़्बी
शेर
मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर तिरा क्या भरोसा है चारागर
ये तिरी नवाज़िश-ए-मुख़्तसर मेरा दर्द और बढ़ा न दे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
शरह-ए-ग़म तो मुख़्तसर होती गई उस के हुज़ूर
लफ़्ज़ जो मुँह से न निकला दास्ताँ बनता गया