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ग़ज़ल
ये हुस्न ओ इश्क़ ही का काम है शुबह करें किस पर
मिज़ाज उन का नहीं मिलता हमारा दिल नहीं मिलता
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
ज़ईफ़ा
उफ़-री मायूसी किसी का आसरा रखती नहीं
शुबह होता है कि तू शायद ख़ुदा रखती नहीं
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
ख़ून-ए-नाहक़ का किसी के शुबह और तुम पर मगर
सीना-ए-'जौहर' में देखो तो ये किस का तीर है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
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ग़ज़ल
लगा लेंगे उसे अहल-ए-वफ़ा बे-शुबह आँखों से
अगर पा-ए-अदू पर उस ने ख़ाक-ए-आस्ताँ रख दी
साइल देहलवी
नज़्म
जमुना-जी
बाइ'स नाज़ है बे-शुबह हिमाला के लिए
सबब-ए-फ़ख़्र-ओ-शरफ़ गोकुल-ओ-मथुरा के लिए
बिस्मिल इलाहाबादी
नज़्म
क्यूँकि हम ख़ास लोग हैं
तो हमारी निय्यत पर शुबह न किया जाए
हमें शाबाशी दें, हमारी तारीफ़ की जाए
शौकत आबिदी
ग़ज़ल
हम आप से जो कुछ कहते हैं वो बिल्कुल झूट ग़लत इक दम
और आप जो कुछ फ़रमाते हैं बे-शुबह बजा फ़रमाते हैं
अंजुम मानपुरी
ग़ज़ल
नक़्द-ए-दिल-ए-ख़ालिस कूँ मिरी क़ल्ब तूँ मत जान
है तुझ कूँ अगर शुबह तो कस देख तपा देख













