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शुजा ख़ावर

1948 - 2012 | दिल्ली, भारत

भूतपूर्व आई.पी .एस अधिकारी जिन्होने आपनी नौकरी बीच में ही छोड़ दी थी।

भूतपूर्व आई.पी .एस अधिकारी जिन्होने आपनी नौकरी बीच में ही छोड़ दी थी।

शुजा ख़ावर

ग़ज़ल 44

अशआर 35

या तो जो ना-फ़हम हैं वो बोलते हैं इन दिनों

या जिन्हें ख़ामोश रहने की सज़ा मालूम है

हज़ार रंग में मुमकिन है दर्द का इज़हार

तिरे फ़िराक़ में मरना ही क्या ज़रूरी है

'शुजा' वो ख़ैरियत पूछें तो हैरत में पड़ जाना

परेशाँ करने वाले ख़ैर-ख़्वाहों में भी होते हैं

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आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए

ईद का चाँद नज़र आया तो रमज़ान गए

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मिरे हालात को बस यूँ समझ लो

परिंदे पर शजर रक्खा हुआ है

पुस्तकें 21

ऑडियो 11

अब तेरे लिए हैं न ज़माने के लिए हैं

उधर तो दार पर रक्खा हुआ है

उस को न ख़याल आए तो हम मुँह से कहें क्या

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