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ग़ज़ल
इजाज़त दे कि अपनी दास्तान-ए-ग़म बयाँ कर लें
तिरे एहसास और अपनी ज़बाँ का इम्तिहाँ कर लें
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
ग़म मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे
एक दिल दे कर ख़ुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे
सीमाब अकबराबादी
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ग़ज़ल
जल्वा-गाह-ए-दिल में मरते ही अँधेरा हो गया
जिस में थे जल्वे तिरे वो आइना क्या हो गया
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
जो मेरे तंगना-ए-दिल में तुझ को जल्वा-गर देखा
मिरी नज़रों ने हैरत से मुझी को उम्र भर देखा