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ग़ज़ल
जमाल पा के तब-ओ-ताब-ए-ग़म यगाना हुआ है
मिरे लिए ये ज़र-ए-गुल चराग़-ए-ख़ाना हुआ है
ज़हीर फ़तेहपूरी
ग़ज़ल
ताब असलम
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ग़ज़ल
ज़माने भर को नई ताब-ओ-तब दिखा न सके
वो शख़्स क्या जो ग़मों में भी मुस्कुरा न सके
गौहर शेख़ पूर्वी
नज़्म
मादाम
ज़ुल्फ़ की छाँव में आरिज़ की तब-ओ-ताब लिए
लब पे अफ़्सूँ लिए आँखों में मय-ए-नाब लिए