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ग़ज़ल
मैं अब शहर-ए-इश्क़ में कुछ क़ानून बनाने वाला हूँ
अब उस उस की ख़ैर नहीं है जिस जिस ने ग़द्दारी की
आमिर अमीर
ग़ज़ल
रुमूज़-ए-मस्लहत को ज़ेहन पर तारी नहीं करता
ज़मीर-ए-आदमिय्यत से मैं ग़द्दारी नहीं करता
आसी करनाली
ग़ज़ल
रास्ता चल देख कर ये ख़ंजरों का शहर है
मुझ से चाहे कुछ भी कर ले ख़ुद से ग़द्दारी न कर
इक़बाल अशहर कुरैशी
ग़ज़ल
हिमाला की बुलंदी भी क़दम-बोसी को गर उतरे
ज़मीं वाले ज़मीं के साथ ग़द्दारी नहीं करते
Meem Sheen Najmi
ग़ज़ल
जिन बुज़ुर्गों ने लुटाए जान-ओ-दिल इस्लाम पर
उन के बच्चों में ये ग़द्दारी कहाँ से आ गई