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ग़ज़ल
जब शब-ए-मह में चकोर उड़ता है मर जाते हैं हम
पुतलियों का अपनी भी तारा कोई रूख़्सारा था
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
ये मिरे सीने में दिल रक्खा है या कोई चकोर
चाँदनी रातों में क्यूँ रहता हूँ मैं बेताब सा
मुर्तज़ा बरलास
ग़ज़ल
तबाह-ए-इश्क़ हैं बुलबुल चकोर परवाना
रह-ए-जहाँ में न सिर्फ़ आदमी की ज़ात लुटी
सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली
ग़ज़ल
फिरती है यूँ दु'आ मिरी शम्अ'-ए-असर के आस-पास
जैसे चकोर हो कोई शब को क़मर के आस-पास