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ग़ज़ल
मैं ने तो खेल खेल में तोड़ा था उस का दिल
फिर सारी उम्र उस को मनाना पड़ा मुझे
फ़ैसल इम्तियाज़ ख़ान
ग़ज़ल
नाकामी सी नाकामी है महरूमी सी महरूमी है
दिल का मनाना सई-ए-मुसलसल उन को भुलाना कोशिश-ए-पैहम