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ग़ज़ल
सैंकड़ों आज़ादियाँ इस क़ैद पर 'हसरत' निसार
जिस के बाइस कहते हैं सब उन का ज़िंदानी मुझे
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
याद थीं हम को भी रंगा-रंग बज़्म-आराईयाँ
लेकिन अब नक़्श-ओ-निगार-ए-ताक़-ए-निस्याँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
फिर क्यूँ न चाक हो जो हैं ज़ोर-आज़माइयाँ
बाँधूंगा फिर दुपट्टा से उस बे-ख़ता के हाथ
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
सब जिस को असीरी कहते हैं वो तो है अमीरी ही लेकिन
वो कौन सी आज़ादी है यहाँ जो आप ख़ुद अपना दाम नहीं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
भलाई ये कि आज़ादी से उल्फ़त तुम भी रखते हो
बुराई ये कि आज़ादी से उल्फ़त हम भी रखते हैं
जोश मलसियानी
ग़ज़ल
आज़ादी का दरवाज़ा भी ख़ुद ही खोलेंगी ज़ंजीरें
टुकड़े टुकड़े हो जाएँगी जब हद से बढ़ेंगी ज़ंजीरें
हफ़ीज़ मेरठी
ग़ज़ल
दिल असीरी में भी आज़ाद है आज़ादों का
वलवलों के लिए मुमकिन नहीं ज़िंदाँ होना
चकबस्त ब्रिज नारायण
ग़ज़ल
तक़य्युद हब्स का आज़ादियाँ दिल की नहीं खोता
क़फ़स को भी बना लेते हैं गुलशन आशियाँ वाले