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ग़ज़ल
नहीं जाती कहाँ तक फ़िक्र-ए-इंसानी नहीं जाती
मगर अपनी हक़ीक़त आप पहचानी नहीं जाती
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
'नुशूर' इस वक़्त भी दुनिया असीर-ए-मुल्क-ओ-दौलत है
अभी फ़िक्र ओ नज़र ता-हद्द-ए-इंसानी नहीं जाती
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
दलाएल से ख़ुदा तक अक़्ल-ए-इंसानी नहीं जाती
वो इक ऐसी हक़ीक़त है जो पहचानी नहीं जाती
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
जिसे कहती है दुनिया कामयाबी वाए नादानी
उसे किन क़ीमतों पर कामयाब इंसान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
हमें छुपाने को दुनिया ने खोल दिए कपड़ों के थान
चाक-गरेबानी ये तिरा ज़ोर-ए-उर्यानी कम न पड़े
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
नादानी और मजबूरी में यारो कुछ तो फ़र्क़ करो
इक बे-बस इंसान करे क्या टूट के दिल आ जाए तो
अंदलीब शादानी
ग़ज़ल
उस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में उस अंजुमन-ए-इरफ़ानी में
सब जाम-ब-कफ़ बैठे ही रहे हम पी भी गए छलका भी गए