कॉलेज का दालान नहीं है प्यारे ज़ालिम दुनिया है
कॉलेज का दालान नहीं है प्यारे ज़ालिम दुनिया है
और यहाँ सच बोलने वाला सच में सब से झूटा है
मैं तेरे दीदार की ख़ातिर आ जाता हूँ ख़्वाबों तक
वर्ना इस लज़्ज़त के अलावा नींदों में क्या रक्खा है
चमकीले कपड़ों से परखा मत कर इंसानी लहजे
गहरे कूएँ में उजला पानी खरा भी हो सकता है
वा'दा कर ऐ दिलकश लड़की वस्ल से ले कर हिज्र तलक
रिश्ता चाहे जैसा भी हो ख़र्चा अपना अपना है
मैं तेरे शिकवे भी जानाँ बिल्कुल ऐसे सुनता हूँ
जैसे बचपन में कोई बच्चा ग़ौर से क़िस्से सुनता है
मेरे ख़फ़ा होने पर उस का वो उल्टा फ़िल्मी जुमला
प्यार से डर नहीं लगता साहब थप्पड़ से डर लगता है
जब लोगो ने सौदाई की लाश उतारी तब बोले
ये तो ज़िंदा मर ही चुका था पंखे से क्यूँ लटका है
मैं इस डर से कॉफ़ी पीने तेरे साथ नहीं जाता
तुझ को तो कॉफ़ी के बहाने मुझ से लड़ना होता है
मुझ को बोने थे दिल में और किसी के ग़म 'आٖफ़ी'
लेकिन दिल की सुर्ख़ी ज़मीं पर अब तक उस का क़ब्ज़ा है
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