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ग़ज़ल
तअ'य्युन कर तो लें वो सम्त-ए-मंज़िल
'ज़िया' जो ख़ाक-ए-सहरा छानते हैं
सय्यद मुज़फ़्फ़र आलम ज़िया अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
उड़ाते ही फिरेंगे उम्र भर वो ख़ाक सहरा की
तिरी ज़ुल्फ़ों के साए में जो दीवाने नहीं आते
शेर सिंह नाज़ देहलवी
ग़ज़ल
सरसर-ए-ख़ूँ के तसव्वुर से लरज़ते क्यूँ हो
ख़ाक-ए-सहरा हूँ उड़ा क्यूँ नहीं देते मुझ को
अख़तर इमाम रिज़वी
ग़ज़ल
फूल गुलशन के नहीं तो ख़ाक-ए-सहरा ही सही
कुछ न कुछ तो चाहिए तसकीन-ए-दामाँ के लिए