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वुस'अतें महदूद हैं इदराक-ए-इंसाँ के लिए

सीमाब अकबराबादी

वुस'अतें महदूद हैं इदराक-ए-इंसाँ के लिए

सीमाब अकबराबादी

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    वुस'अतें महदूद हैं इदराक-ए-इंसाँ के लिए

    वर्ना हर ज़र्रा है दुनिया चश्म-ए-इरफ़ाँ के लिए

    ख़िज़ाँ तू शौक़ के सारा चमन बर्बाद कर

    चंद फाँसें छोड़ जा मेरी रग-ए-जाँ के लिए

    दूर पहुँचीं शोहरतें रफ़्तार सहर-आसार की

    खुल गए रस्ते तिरे हुस्न-ए-ख़िरामाँ के लिए

    फूल गुलशन के नहीं तो ख़ाक-ए-सहरा ही सही

    कुछ कुछ तो चाहिए तसकीन-ए-दामाँ के लिए

    इस लिए देता हूँ दिल तुम को कि लो और भूल जाओ

    मैं ने इक तस्वीर दी है ताक़-ए-निस्याँ के लिए

    धज्जियाँ उड़ने को 'सीमाब' वुस'अत चाहिए

    है कोई मैदान आशोब-ए-गरेबाँ के लिए

    स्रोत :
    • पुस्तक : Intekhab-e-Sukhan(Jild-2) (पृष्ठ 251)
    • रचनाकार : Hasrat Mohani
    • प्रकाशन : uttar pradesh urdu academy (1983)
    • संस्करण : 1983

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