aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "در_بہ_در"
यूँ भटकना दर-ब-दर अच्छा नहीं लगता मुझेबिन तुम्हारे ये सफ़र अच्छा नहीं लगता मुझे
दर-ब-दर की ख़ाक पेशानी पे मल कर आएगाघूम-फिर कर रास्ता फिर मेरे ही घर आएगा
तुम्हारा नाम ले कर दर-ब-दर होता रहूँगाकि बरसों दाग़-ए-दिल अश्कों से मैं धोता रहूँगा
है दिल में एक बात जिसे दर-ब-दर कहेंहर चंद उस में जान भी जाए मगर कहें
दिल पियाला नहीं गदाई काआशिक़ी दर-ब-दर नहीं होती
भटकती फिरती है दिन रात दर-ब-दर तन्हाये किस को ढूँढती रहती है रहगुज़र तन्हा
मैं कब से दर-ब-दर हूँ मुझ को दर दिखाबहुत हुआ तो आख़िर-ए-सफ़र दिखा
अपनी वारफ़्तगी छुपाने कोशौक़ ने हम को दर-ब-दर रक्खा
राहबर मेरा बना गुमराह करने के लिएमुझ को सीधे रास्ते से दर-ब-दर उस ने किया
जो बिछड़े हैं पियारे से भटकते दर-ब-दर फिरतेहमारा यार है हम में हमन को इंतिज़ारी क्या
सुनाएँगे कभी फ़ुर्सत में तुम कोकि हम बरसों रहे हैं दर-ब-दर क्यूँ
दर-ब-दर दिन को भटकता है तसव्वुर मेराहाँ मगर रात को रहता है मिरे कमरे में
इक जुनूँ था कि आबाद हो शहर-ए-जाँ और आबाद जब शहर-ए-जाँ हो गयाहैं ये सरगोशियाँ दर-ब-दर कू-ब-कू तुम कहाँ जाओगे हम कहाँ जाएँगे
कुछ दिनों अपने घर रहा हूँ मैंऔर फिर दर-ब-दर रहा हूँ मैं
बस एक ख़ाक का एहसान है कि ख़ैर से हैंवगर्ना सूरत-ए-ख़ाशाक दर-ब-दर रहते
दर-ब-दर भटका मैं उस की आरज़ू के वास्तेहसरतें भी हम-सफ़र थीं जुस्तुजू के वास्ते
हमीं बचे हैं यहाँ आख़िरुज़-ज़माँ लेकिनसभों को अपना तआरुफ़ दें दर-ब-दर जाएँ
हुजूम-ए-गिर्या से हूँ दर-ब-दर मैंकि घर में सर तलक पानी खड़ा है
ये सहन गवाह है हमाराइस घर में भी दर-ब-दर गए हम
शहर-ए-मुम्किनात में हो के न उम्मीद मैंफिर रहा हूँ दर-ब-दर दिल बहुत उदास है
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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