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ग़ज़ल
सब ने माना मरने वाला दहशत-गर्द और क़ातिल था
माँ ने फिर भी क़ब्र पे उस की राज-दुलारा लिक्खा था
अहमद सलमान
ग़ज़ल
शर्म से दोहरा हो जाएगा कान पड़ा वो बुंदा भी
बाद-ए-सबा के लहजे में इक बात में ऐसी पूछूँगा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
वो आज फिर यही दोहरा के चल दिया 'बानी'
मैं भूल के नहीं अब तुझ से बोलने वाला
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
ज़रा मुश्किल से समझेंगे हमारे तर्जुमाँ हम को
अभी दोहरा रही है ख़ुद हमारी दास्ताँ हम को