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ग़ज़ल
'सीमाब' बे-तड़प सी तड़प हिज्र-ए-यार में
क्या बिजलियाँ भरी हैं दिल-ए-बे-क़रार में
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
जल्वा-गर है इस में ऐ 'सीमाब' इक दुनिया-ए-हुस्न
जाम-ए-जम से है ज़ियादा दिल का आईना मुझे
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
तअ'ज्जुब क्या लगी जो आग ऐ 'सीमाब' सीने में
हज़ारों दिल में अंगारे भरे थे लग गई होगी
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
दे ही देते हैं किसी तरह तसल्ली 'सीमाब'
ख़ुश रहें वो जो मिरे दिल की दुआ लेते हैं
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
ठिकाना हो कहाँ 'सीमाब' फिर नाज़-आफ़रीनी का
अगर हम अपने दिल को बे-नियाज़-ए-दो-जहाँ कर लें
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
इलाही भेद तेरे उस ने ज़ाहिर कर दिए सब पर
कहा था किस ने तू 'सीमाब' को इंसान पैदा कर
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
ये है 'सीमाब' इक ना-गुफ़्ता ब-अफ़्साना क्या कहिए
वतन से कुंज-ए-ग़ुर्बत में चले आने पे क्या गुज़री
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
हैं दिल के दाग़ भी क्या दिल के दाग़ ऐ 'सीमाब'
टपक रहे हैं मगर मुस्कुराए जाते हैं
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
न क्यूँ 'सीमाब' मुझ को क़द्र हो वीरानी-ए-दिल की
ये बुनियाद-ए-नशात-ए-दो-जहाँ मालूम होती है
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
मरहमत फ़रमा के ऐ 'सीमाब' ग़म की लज़्ज़तें
ज़ीस्त की तल्ख़ी को फ़ितरत ने गवारा कर दिया
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
क्या ख़बर 'सीमाब' कब घबरा के दे दे अपनी जान
ज़ब्त गो अब तक तहम्मुल-कोश है तेरे बग़ैर
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
जोश-ए-गिर्या उस पर आहों की ये सैलाबी हवा
कौन सी है मौज-ए-अश्क ऐसी जो तूफ़ानी नहीं