आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "عسل"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "عسل"
ग़ज़ल
रिज़्क़ खा कर ग़ैर की क़िस्मत का ज़ंबूर-ए-असल
तू ने देखा हल्क़ तक जा कर ग़िज़ा उल्टी फिरी
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
बचा नीं कोई उस ज़ालिम के जौर-ए-चश्म-ओ-मिज़्गाँ से
वहाँ आईना भी शान-ए-असल का सा शबक्का है
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो