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ग़ज़ल
घड़ी भर रंग निखरा सूरत-ए-गुल-हा-ए-तर मेरा
उसी हस्ती पे उस गुलशन में था ये शोर-ओ-शर मेरा
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
फ़ज़ा-ए-आदमियत को सँवरने ही नहीं देते
सियासत-दाँ दिलों के ज़ख़्म भरने ही नहीं देते
चरण सिंह बशर
ग़ज़ल
फ़ज़ा-ए-आदमियत को सँवरने ही नहीं देते
सियासत-दाँ दिलों के ज़ख़्म भरने ही नहीं देते