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ग़ज़ल
क्या ये मौसम तिरे क़ानून के पाबंद नहीं
मौसम-ए-गुल में ये दस्तूर-ए-ख़िज़ाँ किस का है
मेराज फ़ैज़ाबादी
ग़ज़ल
मुरत्तब कर गया इक इश्क़ का क़ानून दुनिया में
वो दीवाने हैं जो मजनूँ को दीवाना बताते हैं
आसी उल्दनी
ग़ज़ल
मैं अब शहर-ए-इश्क़ में कुछ क़ानून बनाने वाला हूँ
अब उस उस की ख़ैर नहीं है जिस जिस ने ग़द्दारी की
आमिर अमीर
ग़ज़ल
मोहज़्ज़ब लोग भी समझे नहीं क़ानून जंगल का
शिकारी शेर भी कव्वों का हिस्सा छोड़ देते हैं
अब्बास दाना
ग़ज़ल
इक तरफ़ क़ानून है और इक तरफ़ इंसान है
ख़त्म होता ही नहीं जुर्म-ओ-सज़ा का सिलसिला
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
नहीं अज़-रू-ए-क़ानून-ए-मोहब्बत जुर्म-ए-नज़्ज़ारा
तो फिर क्यूँ हैं जनाब-ए-दिल अगर देखो मगर देखो
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
वक़्त करता है भला किस से यहाँ हुस्न-ए-सुलूक
वो भी इस दौर में क़ानून-ए-मकाफ़ात के साथ