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ग़ज़ल
और अपने हक़ में ता'न-ए-तग़ाफ़ुल ग़ज़ब हुआ
ग़ैरों से मुल्तफ़ित बुत-ए-ख़ुद-काम हो गया
इस्माइल मेरठी
ग़ज़ल
ओ निगाह-ए-मुल्तफ़ित बे-फ़ाएदा है इल्तिफ़ात
दर्द ही दिल में नहीं है अब दवा से क्या ग़रज़
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
अब मैं जो मुल्तजी हूँ तो वो मुल्तफ़ित नहीं
कहते हैं बार बार कि फ़ुर्सत नहीं मुझे