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ग़ज़ल
हर अँख 'मुनीर' उस को जगह देती है दिल में
ख़ुद हुस्न की नज़रें हैं परस्तार-ए-मोहब्बत
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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हर अँख 'मुनीर' उस को जगह देती है दिल में
ख़ुद हुस्न की नज़रें हैं परस्तार-ए-मोहब्बत
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