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ग़ज़ल
शौक़-ए-आज़ादी में तड़पूँ उस पे राज़ी दिल न था
वर्ना बेताबी सलामत छूटना मुश्किल न था
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
क्यूँ मलामत इस क़दर करते हो बे-हासिल है ये
लग चुका अब छूटना मुश्किल है उस का दिल है ये
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
बे-कसों मासूम की मुश्किल-कुशाई कीजिए
छूटना चक्कर से है गर आसमान-ए-पीर के
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
ये हिजरत थी मुक़द्दर लाज़मी था छूटना सब कुछ
मरासिम राब्ते घर और नगर की बात मत सोचो
हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
मुझे हर कारवाँ से छूटना इस बद-गुमानी में
कि शायद राहबर को रब्त-ए-पिन्हानी हो रहज़न से
इज्तिबा रिज़वी
ग़ज़ल
छूटना दुश्वार हो जाता है दाम-ए-इश्क़ से
फाँस लेता है गला कुछ इस तरह गेसू-ए-दोस्त
हामिद हुसैन हामिद
ग़ज़ल
छोड़ना घर का हमें याद है 'जालिब' नहीं भूले
था वतन ज़ेहन में अपने कोई ज़िंदाँ तो नहीं था
हबीब जालिब
ग़ज़ल
ज़ख़्मों पर मरहम लगवाओ लेकिन उस के हाथों से
चारा-साज़ी एक तरफ़ है उस का छूना एक तरफ़