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ग़ज़ल
हम वो गुम-गश्त-ए-मोहब्बत हैं कि तुम तो क्या हो
ख़ुद को हम ढूँडने निकलें तो ज़माने लग जाएँ
महशर आफ़रीदी
ग़ज़ल
पए-गुल-गश्त सुना है कि वो आज आते हैं
फूलों की भी ये ख़ुशी है कि खिले जाते हैं
लाला माधव राम जौहर
ग़ज़ल
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
किस परी-ख़ाना-ए-गुल-गश्त में पहुँचा हूँ कि अब
आइने में भी ठहरते नहीं पैकर अपने