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ग़ज़ल
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
बहुत अर्सा गुनहगारों में पैग़मबर नहीं रहते
कि संग-ओ-ख़िश्त की बस्ती में शीशागर नहीं रहते
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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बहुत अर्सा गुनहगारों में पैग़मबर नहीं रहते
कि संग-ओ-ख़िश्त की बस्ती में शीशागर नहीं रहते